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प्रशमपीयूषपाथोधि, वैराग्यवारिधि, दीर्घतपोनिधि, अज्ञानतिमिररजनीपति, कृतरागादिद्वन्द्वनिकृति, सद्दर्शनसुविवेचितमति, रतिपतिमृगमृगपति, सुविहिततपोगच्छगगनाङ्गणगोष्पति, शासनप्रभावक, भक्तवत्सल, भवतितीप॒सत्त्वसुकर्ण, सुवर्णकाय, संघविभूषण, विश्ववंद्य, परमपूजनीय, आचार्यपुरन्दर श्रीमद् विजयसिद्धिसूरीश्वरजी महाराजा ! आपश्रीके अद्भुतगुणवृन्दोंके कुसुमोपवनमें भ्रमररसिक होकर, आपश्रीकी विश्वव्यापी यशश्चन्द्रिकाका चकोर उपासक बनकर, श्रीमद्की भव्यजीवोपकारकी घनगर्जनामें मयूरप्रमोदका अनुभव कर, भवदीयभवशोषक दीर्घसंयमतपस्तरणिके दर्शनसे उल्लसित होकर, महामहोपाध्याय श्रीविनयविजयजी महाराजकृतहैमप्रकाशकी हस्तलिखितप्रति पानेपर सुलभ हुए इस ग्रन्थका संपादन-प्रकाशन श्रीमद्के पवित्र करकमलमें अर्पित करता हुआ मैं कथञ्चित् कृतकृत्य होता हुं।
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भवदीय गुणगण-उपासक विजयक्षमाभद्रसूरि
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