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________________ समाधि लाभ द्वार-लेश्या नामक सातवाँ द्वार-छह लेश्या का दृष्टांत श्री संवेगरंगशाला द्वारा या नेत्र के संकोच आदि करके अथवा मस्तक को हिलाकर आदि इशारे से अपनी इच्छा को बतलावे। तब निर्यामक क्षपक की आराधना में उपयोग को दे, सावधान बनें। क्योंकि श्रुत के रहस्य के जानकार वह संज्ञा करने को जान सकता है। इस प्रकार समता को प्राप्त करते तथा प्रशस्त ध्यान को ध्याते और लेश्या से विशुद्धि को प्राप्त करते वह क्षपक मुनि गुण श्रेणि के ऊपर चढ़ता है। इस प्रकार धर्मशास्त्र रूप मस्तक मणि तुल्य सद्गति में जाने के सरल मार्ग समान चार मूल द्वार वाली संवेगरंगशाला नाम की आराधना के नौ अंतर द्वार वाला चौथा समाधि लाभ द्वार में ध्यान नाम का छट्ठा अंतर द्वार कहा है। अब ध्यान का योग होने पर भी शुभाशुभ गति तो लेश्या की विशेषता से ही होती है, अतः लेश्या द्वार को कहते हैं ।।९६६५।।। लेश्या नामक सातवाँ द्वार : __ कृष्ण, नील, कपोत, तेजस्, पद्म और शुक्ल, ये छह प्रकार की लेश्या हैं। ये विविध रूप वाली कर्म दल के सानिध्य से स्फटिक मणि समान स्वभाव से निर्मल भी जीव को मलिन कर देती है, जो जामुन खाने वाले छह पुरुषों के परिणाम की भिन्नता से समझ सकते हैं, जो हिंसादि भावों की विविधता के परिणाम वाली हो, उसे लेश्या कहते हैं। इस पर दो दृष्टांत कहते हैं। वह इस प्रकार : छह लेश्या का दृष्टांत किसी एक जंगल में भूख से व्याकुल छह पुरुष घूम रहे थे। वहाँ मानों आकाश के आखिर विभाग को खोजने के लिए ऊँचा बढ़ा न हो इस प्रकार विशाल मूल वाला, अच्छी तरह पके हुए फलों के भार से नमी हुई टहनी वाला, फैली हुई बहुत छोटी डाली वाला, सर्व प्रकार से जामुन गुच्छों से ढका हुआ, प्रत्येक गुच्छे में सुंदर दिखने वाले पक्के ताजे सुंदर जामुन वाला, तथा पवन के कारण नीचे गिरे हुए फल वाली भूमि वाला, कभी पूर्व में नहीं देखा हुआ साक्षात् कल्पवृक्ष के समान एक जामुन के वृक्ष को देखा। इसे देखकर परस्पर वे कहने लगे कि-अहो! किसी भी तरह अति पुण्योदय से इस वृक्ष को हमने प्राप्त किया है। इसलिए पधारो! थोड़े समय में इस महावक्ष के ये अमत समान फलों को खायेंगे। सभी ने खाने का स्वीकार किया। परंत फलों को किस प्रकार खाना चाहिए? तब वहाँ एक बोला कि-ऊपर चढ़ने वाले को प्राण का संदेह है, अतः वृक्ष को मूल में से काटकर नीचे गिरा देना चाहिए। दूसरे ने कहा कि इस तरह बड़े वृक्ष को संपूर्ण रूप में काटने से हमें क्या लाभ होगा? हमें फल खाने हैं तो सिर्फ इसकी एक बड़ी शाखा काटकर गिरा दो। तीसरे ने कहा कि-बड़ी शाखा तोड़ने से क्या लाभ? सिर्फ उसकी एक छोटी टहनी को ही काट दो। चौथा बोला कि-सिर्फ उसके गुच्छे तोड़ने से क्या फायदा? केवल पके हुए और खाने योग्य फलों को ही तोड़ लेना चाहिए। छट्ठा बोला कि-फल तोड़ने की क्या आवश्यकता है? जितने फलों की आवश्यकता है, उतने पके फल तो इस वृक्ष के नीचे गिरे हुए हैं, उन्हीं से भूख मिटाकर प्राणों का निर्वाह हो जायगा। इस दृष्टांत का उपनय इस प्रकार है कि-पेड़ को मूल से काटने वाला पुरुष कृष्ण लेश्या वाला है। बड़ी शाखा काटने वाला पुरुष नील लेश्या वाला है। छोटी टहनी काटने वाला कपोत लेश्या वाला है। और गुच्छों को तोड़ने वाला तेजो लेश्या वाला है, ऐसा जानना। वृक्ष के ऊपर रहे पक्के फलों को खाने की इच्छा वाला पद्म लेश्या वाला है और स्वयं नीचे गिरे पड़े फलों को ग्रहण करने का उपदेश देनेवाला शुक्ल लेश्या में रहा हुआ जानना चाहिए। 401 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004037
Book TitleSamveg Rangshala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti Bhinmal
Publication Year
Total Pages436
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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