SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 412
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ समाधि लाभ द्वार-कवच नामक चौथा द्वार श्री संवेगरंगशाला तिथंच होने पर भी वैतरणी बंदर ने अनशन स्वीकार किया था। क्षुद्र चींटियों के द्वारा तीव्र वेदनावाला भी प्रतिबोधित हुए चण्ड कौशिक सर्प ने पंद्रह दिन का अनशन स्वीकारा था तथा सुकौशल की पूर्व जन्म की माता शेरनी के भव में तिर्यंच जन्म में भी भूख की पीड़ा को नहीं गिनकर इस तरह जाति स्मरण प्राप्तकर उसने अनशन स्वीकार किया। इस प्रकार यदि स्थिर समाधि वाले इन पशुओं ने भी अनशन को स्वीकार किया, तो हे सुंदर! पुरुषों में सिंह तूं उसे क्यों स्वीकार नहीं करता? और रानी के द्वारा वैसे उपसर्ग होने पर भी सुदर्शन सेठ गृहस्थ भी मरने को तैयार हुआ, परंतु स्वीकार किये व्रत से चलित नहीं हुआ। समग्र रात्री तक अति तीव्र वेदना उत्पन्न हुई, परंतु उस पर ध्यान नहीं दिया और स्थिर सत्त्व वाले चन्द्रावतंसक राजा ने कायोत्सर्ग के द्वारा सद्गति प्राप्त की। पशुओं के बाड़े में पादपोगमन अनशन चाणक्य ने स्वीकार किया था, सुबंधु से जलाई हुई आग से जलते हुए भी उन्होंने समाधि मरण को प्राप्त किया। इस प्रकार यदि गृहस्थ भी स्वीकार किये कार्य में इस प्रकार अखंड समाधि वाले होते हैं, तो श्रमणों में सिंह समान हे क्षपक! तूं भी उस समाधि को सविशेष सिद्ध कर। बुद्धिमान सत्पुरुष बड़ी आपत्तियों में भी अक्षुब्ध मेरु के समान अचल और समुद्र के समान गंभीर बनते हैं। निज पर भार उठाते स्वाश्रयी शरीर की रक्षा नहीं करता, बुद्धि से अथवा धीरज से अत्यंत स्थिर सत्त्व वाले शास्त्र कथित विहारादि साधना करते उत्तम निर्यामक की सहायता वाला, धीर पुरुष अनेक शिकारी जीवों से भरी हुई भयंकर पर्वत की खाई में फंसे हुए अथवा शिकारी प्राणियों की दाढ़ में पकड़े गये भी शरीर पर के राग को छोड़कर अनशन की साधना करते हैं। निर्दयता से सियार द्वारा भक्षण करते और घोर वेदना को भोगते भी अवंति सुकुमार ने शुभध्यान से आराधना की थी। मुगिल्ल नामक पर्वत में शेरनी से भक्षण होते हुए भी निज प्रयोजन की सिद्धि करने की प्रीति वाले भगवान श्री सुकौशल मुनि ने मरण समाधि को प्राप्त किया। ब्राह्मण श्वसुर से मस्तक पर अग्नि जलाने पर भी काउस्सग्ग में रहे भगवान गजसुकुमाल ने समाधि मरण प्राप्त किया। इसी तरह साकेतपुर के बाहर कायोत्सर्ग ध्यान में स्थिर रहे भगवान कुरुदत्त पुत्र ने भी गायों का हरण होने से उसके मालिक ने चोर मान कर क्रोध से अग्नि जलाने पर भी मरण समाधि को प्राप्त की। राजर्षि उदायन ने भी भयंकर विष वेदना से पीड़ित होते हुए भी शरीर पीड़ा को नहीं गिनते हुए मरण समाधि को प्रास की। नाव में से गंगा नदी में फेंकते श्री अर्णिका पुत्र आचार्य ने मन से दुःखी हुए बिना शुक्ल ध्यान से अंतकृत केवली होकर आराधना कर मुख्य हेत को प्राप्त किया। श्री धर्मघोष सरि चंपा नगरी में मास क्षक्षण करके भयंकर प्यास प्रकट हुई और गंगा के किनारे पानी था, फिर भी अनशन द्वारा समाधि मरण को प्राप्त किया। रोहिड़ा नगर में शुभ लेश्या वाले ज्ञानी स्कंद कुमार मुनि ने कौंच पक्षी से भक्षण होते हुए उस वेदना को सहन करके समाधि मरण प्राप्त किया ।।९५३२।। हस्तिनापुर में कुरुदत्त ने दोहनी' में शिंग की फली के समान जलते हुए उसकी पीड़ा सहन करके समाधि मरण प्राप्त किया। कुणाल नगरी में पापी मंत्री ने वसति जलाते ऋषभ सेन मुनि भी शिष्य परिवार सहित जलने पर भी आराधक बनें थें। तथा पादपोपगमन वाले वज्रस्वामी के शिष्य बाल मुनि ने भी तपी हुई शिला पर मोम के समान शरीर गलते आराधना प्राप्त की थी। मार्ग भूले हुए और प्यास से मुरझाते धनशर्मा बाल मनि भी नदी का जल अपने आधीन होते हुए भी उसे पिये बिना अखंड समाधि से स्वर्ग को गये। एक साथ में मच्छरों ने शरीर में से रुधिर पीने पर उन मच्छरों को रोके बिना सम्यक् सहन करते सुमनभद्र मुनि स्वर्ग गये। महर्षि मेतारज सोनी द्वारा मस्तक पर गीला चमड़ा कसकर बाँध दिया गया, आँखें बाहर निकल गईं फिर भी अपूर्व 1. दोणिमंत म्मि 395 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004037
Book TitleSamveg Rangshala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti Bhinmal
Publication Year
Total Pages436
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy