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________________ श्री संवेगरंगशाला समाधि लाभ द्वार-बारहवाँ दुष्कृत गर्ता द्वार है। सर्प, नेवला, गोंधा, छिपकली और उसके अण्डे आदि चूहे, कौएँ, सियार, कुत्ते या बिलाड़ आदि पंचेन्द्रिय जीवों का यदि हास्य या द्वेष से सप्रयोजन अथवा निष्प्रयोजन क्रीड़ा करते, जानते या अजानते इस जन्म अथवा अन्य जन्मों में स्वयं या पर द्वारा नाश किया हो उसकी भी त्रिविध-त्रिविध क्षमा याचना कर। क्योंकि यह तेरा खमत खामना का समय है। मेंढक, मछली, कछुआ और घड़ियाल आदि जलचर जीवों को, सिंह, हिरण, रीछ, सुअर, खरगोश आदि स्थलचर जीवों को, तथा हंस, सारस, कबूतर, कौंच, पक्षी, तीतर, आदि खेचर जीवों को, इन विविध जीवों को संकल्प से अथवा आरंभ से इस जन्म अथवा अन्य जन्मों में स्वयं या दूसरों के द्वारा जोजो विराधना की हो अथवा परस्पर शरीर द्वारा टकराये हों, सामने आते मारे हों, कष्ट दिया हो, डराया हो अथवा उनको मूल स्थान से अन्य स्थान पर रखा हो, अथवा थकवा दिया हो, दुःख दिया हो, और परस्पर एकत्रित किया हो, कुचले हों इस तरह विविध दुःखों में डाले हों, प्राणों से रहित किया हो उनकी भी त्रिविध-त्रिविध क्षमा याचना कर। क्योंकि यह तेरा क्षमापना का अवसर है। और मनुष्य जीवन काल में यदि किसी समय राजा, मंत्री आदि अवस्था को प्राप्त कर तूंने मनुष्यों को पीड़ा दी हो उसकी क्षमा याचना कर। उसमें जिसका दुष्ट चित्त से चिंतन किया हो, मन में दुष्ट भाव का विचार किया हो, दुष्ट वचन द्वारा-कटु वचन बोला हो या कहा हो और काया द्वारा दुष्ट नजर से देखा हो, न्याय को अन्याय और अन्याय को न्याय रूप सिद्ध करते उसे कलुषित भाव से दिव्य देकर अर्थात् फंदे में फंसाकर उसे जलाया हो, दोषित को निर्दोष शुद्ध किया हो, और सत्य को असत्य दोषारोपण से दंड दिलवाया, अथवा कैद करवाया, बंधन में डाला, बेड़ी पहनवाई, ताड़न करवाया, या मरवाया, और विविध प्रकार से शिक्षा करवाई, तथा उनको दंड दिलवाया, मस्तक मुंडन करवाया, अथवा घुटने, हाथ, पैर, नाक, होंठ, कान आदि अंगोंपांगों का छेदन करवाया, और शस्त्रों को लेकर उसके शरीर को छीलकर अथवा काटकर चमड़ी उतारकर, खार से सर्व अंग जलाया, यंत्रों से पीलन किया, अग्नि से जलाया, खाई में फेंकवाया, अथवा वृक्षादि के साथ लटकाया और अंडकोष गलवाये, आँखें उखाड़ दीं, दांत रहित किया और तीक्ष्ण शूली पर चढ़ाया अथवा शिकार में युद्ध के मैदान में तिर्यंच मनुष्यों का छेदन-भेदन अथवा लूटे, अंग रहित किये, भगाये, और शस्त्रधारी भी प्रहार करते या नहीं करते अथवा शस्त्र रहित और भागते भी उनको अति तीव्र राग या द्वेष से इस जन्म अथवा अन्य जन्मों में स्वयं अथवा पर द्वारा प्राण मुक्त किया हो उसे भी त्रिविध-त्रिविध क्षमा याचना कर। क्योंकि यह तेरा क्षमापना का समय है। तथा पुरुष जीवन में अथवा स्त्री जीवन में रागांध बनकर तूंने परदारा, पर पुरुष आदि में यदि अनर्थकारी पाप का सेवन किया हो, उसकी भी निंदा कर। और इस संसार रूपी विषम अटवी में परिभ्रमण करते अत्यंत रागादि से गाढ़ मूढ़ बनकर तूंने कदापि कहीं पर भी विधवादि अवस्था में व्यभिचार रूप में पाप सेवन किया उससे गर्भ धारण किया हो, उसको अति उष्ण वस्तुओं का भक्षण, अथवा कष्टकारी कसैला रस, या तीक्ष्ण खार का पानी पीने से पेट को मसलना अथवा किल डालना इत्यादि प्रयोग द्वारा दूसरे के अथवा अपने गर्भ को गलाया हो, टुकड़े-टुकड़े करके निकाला हो, गिराया हो अथवा नाश करना आदि सर्व घोर पाप किये हों उनका हे क्षपक मुनि! पुनः संवेग प्राप्त कर तूं वांछित निर्विघ्न आराधना के लिए त्रिविध-त्रिविध सर्वथा गर्दा कर। और जब जवानी में सौत के प्रति अति द्वेष आदि के कारण उसके गर्भ को स्तंभन आदि करवाया हो, अथवा पति का घात करवाया, या वशीकरण कराया, कार्मण करवाया इत्यादि से उस सौत के कारण पति का वियोग किया अथवा जीते पति को मरण तुल्य किया इत्यादि जो पाप किया हो, उसकी भी तूं निंदा कर। तथा व्यभिचारी जीवन में यदि उत्पन्न हुए जीते बालक को फेंक दिया, वेश्या जीवन में तूंने दूसरों के बालक का हरण किया, मनुष्य जीवन में ही राग Jan se352 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004037
Book TitleSamveg Rangshala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti Bhinmal
Publication Year
Total Pages436
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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