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________________ समाधि लाभ द्वार-ग्यारहवाँ चार शरण द्वार श्री संवेगरंगशाला जो तीनों लोक की लक्ष्मी के तिलक समान हैं, मिथ्यात्व रूप अंधकार के विनाशक सूर्य हैं, तीनों लोक रूपी मोह मल्ल को जीतने में महामल्ल के समान हैं, महासत्त्व वाले हैं, तीन लोक द्वारा जिनके चरण कमल की पूजा होती है, समस्त तीन लोक में विस्तृत प्रताप वाले हैं, विस्तृत प्रताप से प्रचंड पाखंड़ियों के प्रभाव का नाश करने वाले हैं, विस्तृत कीर्तिरूपी कमलिनी के विस्तार से समस्त भवन रूपी सरोवर के व्यापक हैं, तीन लोक रूपी सरोवर में राजहंस तुल्य हैं, धर्म की धुरा को धारण करने में श्रेष्ठ वृषभ के समान हैं, जिसकी सर्व अवस्थाएँ प्रशंसनीय हैं, अप्रतिहत-अजेय शासन वाले हैं, अतुल्य तेज वाले हैं, जिनका विशिष्ट दर्शन संपूर्ण पुण्य समूह से युक्त है, जो श्रीमान् भगवान् तथा करुणा वाले हैं और प्रकृष्ट जय वाले सर्व श्री अरिहंतों को हे सुंदर मुनि! तूं शरण रूप में स्वीकार। श्री सिद्धों का स्वरूप और शरण स्वीकार :-इस मनुष्य जन्म में चारित्र को पालकर पाप के आश्रव को रोककर पंडित मरण से आयुष्य पूर्णकर संसार परिभ्रमण को दूर करके कृत कृत्यपने से जो सिद्ध हुए हैं, निर्मल केवलज्ञान से बुद्ध हैं, संसार के मिथ्यात्वादि कारणों से मुक्त हैं, सुखरूपी लक्ष्मी में सर्वथा तल्लीन हैं, जिन्होंने सकल दुःखों का अंत किया हैं, सम्यग्ज्ञानादि गुणों से अनंत भावों के ज्ञाता हैं, अनंत वीर्य लक्ष्मीवाले हैं, अनंत सुख समूह से संक्रान्त-सुखी बने हैं, सर्व संग से रहित निर्मुक्त हैं और जो स्व-पर कर्म बंध में निमित्त नहीं हुए हैं ऐसे श्री सिद्ध परमात्माओं को हे सुंदर मुनि! तूं शरण रूप में स्वीकार। और जिसके कर्मों का आवरण नष्ट हो गये हैं, समस्त जन्म, जरा और मरण से पार हो गये हैं, तीन लोक के मस्तक के मुकुट रूप हैं, जगत के सर्व जीवों के श्रेष्ठ शरण भूत हैं, जो क्षायिक गुणात्मक हैं, समस्त तीन जगत के श्रेष्ठ पूजनीय हैं, शाश्वत सुख स्वरूप हैं, सर्वथा वर्ण, गंध रस और रूप से रहित हुए और जो मंगल का घर, मंगल के कारणभूत एवं परम ज्ञानमय-ज्ञानात्मक शरीर वाले हैं, ऐसे श्री सिद्ध भगवंतों का हे सुंदरमुनि! तूं शरण स्वीकार कर। और लोकान्त-लोक के अग्र भाग में सम्यग् स्थिर हुए हैं, दुःसाध्य सर्व प्रयोजनों को जिन्होंने सिद्ध किया हैं, सर्वोत्कृष्ट प्रतिष्ठा को प्राप्त की हैं, और इससे ही वे निष्ठितार्थ-कृतकृत्य भी हैं, जो शब्दादि के इन्द्रिय जन्य विषयभूत नहीं हैं, आकार रहित हैं, जिनको इन्द्रिय जन्य क्षायोपशमिक ज्ञान नहीं है और उत्कृष्ट अतिशयों से समृद्धशाली हैं। उन श्री सिद्धों की शरण स्वीकार कर। एवं जो तीक्ष्ण धाराओं से अच्छेद्य, सर्व सैन्य से अभेद्य, अजय, जल समूह भीगा नहीं सकता, अग्नि जला नहीं सकती, प्रलय काल का प्रबल वायु भी चलायमान नहीं कर सकता, वज्र से भी चूर नहीं हो सकता ऐसे सक्ष्म निरंजन. अक्षय और अचिंत्य महिमा वाले हैं तथा अत्यंत परम योगी ही उनका यथास्थित स्वरूप जान सकते हैं ऐसे कृतकृत्य नित्य जन्म, जरा, मरण से रहित तथा श्रीमंत, भगवंत, पुनः संसारी नहीं होने वाले, सर्व प्रकार से विजय को प्राप्त हुए परमेश्वर और शरण स्वीकारने योग्य श्री सिद्ध परमात्मा को हे सुंदर मुनि! निज कर्मों को छेदन करने की इच्छा वाले आराधना में सम्यक् स्थिर और विस्तार होते तीव्र संवेग रस का अनुभव करते तूं शरण स्वीकार कर। साधु का स्वरूप और शरण स्वीकार :-हमेशा जिन्होंने जीव अजीव आदि परम तत्त्वों के समूह को सम्यग् रूप में जाना है, प्रकृति से ही निर्गुण संसार वासना के स्वरूप को जो जानते हैं, संवेग से महान् गीतार्थ, शुद्ध क्रिया में परायण, धीर और सारणा, वारणा चोयणा, और प्रतिचोयणा को करने वाले और जिन्होंने सद्गुरु की निश्रा में पूर्णरूप से साधुता को सम्यक् स्वीकार किया है ऐसे निग्रन्थ श्रमणों की हे सुंदर मुनि! तूं शरण स्वीकार कर। 345 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004037
Book TitleSamveg Rangshala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti Bhinmal
Publication Year
Total Pages436
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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