SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 341
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्री संवेगरंगशाला समाधि लाभ द्वार-पंच नमस्कार वामक आठवाँ द्वार-श्रावक पुत्र पर एटांत-श्राविका की क्या से शोभित उत्तम देव तथा मनुष्य के अंदर महान् उत्तम कुल में जन्म लेकर अंत में सर्व कर्मों का क्षय करके सिद्धि पद को प्राप्त करता है। तथा इस संसार में नमस्कार का प्रथम अक्षर 'न' की वास्तविक प्राप्ति क्षण क्षण में ज्ञानावरणीय आदि कर्मों के अनंत पुद्गलों की निर्जरा होने से होती है तो फिर शेष अक्षरों की प्राप्ति तो प्रत्येक अक्षर से अनंत गुणी विशुद्धि होने से होती है। इस तरह जिसका एक-एक अक्षर भी अत्यंत कर्म क्षय करने में समर्थ है, वह नमस्कार वांछित फल को देनेवाला कैसे नहीं होता है? और जो पूर्व में कहा है कि इस जन्म में अर्थ और काम की प्राप्ति होती है। उसमें मृतक के व्यतिकर से धन प्राप्त करने वाले श्रावक पुत्र का अर्थ प्राप्ति के विषय में दृष्टांतभूत है।।७७४७।। वह इस प्रकार : श्रावक पुत्र का दृष्टांत एक बड़े नगर के अंदर यौवन से उन्मत्त वेश्या और जुएँ का व्यसनी तथा प्रमाद से अत्यंत घिरा हुआ एक श्रावक पुत्र रहता था। बहुत काल तक अनेक प्रकार से समझाने पर भी उसने धर्म का स्वीकार नहीं किया और निरंकुश हाथी के समान वह स्वछंद विलास करता था। फिर भी मरते समय पिता ने करुणा से बुलाकर उसे कहा कि-हे पुत्र! यद्यपि तूं अत्यंत प्रमादी है, फिर भी समस्त वस्तुओं के साधने में समर्थ इस श्री पंच नमस्कार मंत्र को तूं याद रखना और हमेशा दुःखी अवस्था में इस श्रेष्ठ मंत्र का स्मरण करना। इसके प्रभाव से भूत, वेताल उपद्रव नहीं करते हैं और शेष क्षुद्र उपद्रवों का समूह भी अवश्य नाश होता है। इस तरह पिता के वचन आग्रह से उसने 'तहत्ति' कहकर स्वीकार किया, बाद में पिता मर गया और धन का समूह नष्ट हो गया, तब स्वछंद भ्रमण करने के स्वभाव वाले उसने एक त्रिदंडी के साथ में मित्रता की अथवा कुल मर्यादा छोड़ने वाले पुरुष के लिए यह क्या है? एक समय त्रिदंडी ने विश्वासपूर्वक उसे कहा कि-हे भद्र! यदि तूं काली चतुर्दशी की रात्री में अखंड श्रेष्ठ अंग वाले मृतक शरीर को लेकर आये तो दिव्य मंत्र शक्ति से साधना करके तेरी दरिद्रता को खत्म कर दूँ। इस बात को श्रावक पुत्र ने स्वीकार किया और उसके कहे समयानुसार निर्जन श्मशान प्रदेश में उसी तरह का मृतक लाकर उसे दिया। फिर उस शब के हाथ में तलवार देकर मंडलाकार बनाकर उसके ऊपर शब रखा और उसके सामने ही श्रावक पुत्र को बैठाया। फिर उस त्रिदंडी ने जोर से विद्या का जाप प्रारंभ किया और विद्या के आवेश से शब उठने लगा, इससे श्रावक पुत्र डरने लगा, अतः वह शीघ्र पंच नमस्कार मंत्र का स्मरण करने लगा, और इसके सामर्थ्य से शब वापिस जमीन के ऊपर गिरा। पुनः त्रिदंडी के दृढ़ विद्या जाप से शब उठा और श्रावक पत्र के नमस्कार मंत्र के प्रभाव से नीचा गिरा, तब त्रिदंडी ने कहा कि हे श्रावक पत्र! तं कुछ भी मंत्रादि को जानता है? उसने कहा कि-मैं कुछ भी नहीं जानता हूँ फिर ध्यान के प्रकर्ष में चढ़ते त्रिदंडी ने पुनः अपनी श्रेष्ठ विद्या का जाप करने लगा। तब पंच नमस्कार से रक्षित श्रावक पुत्र को वह शब खतम करने में असमर्थ बना और उसने शीघ्र ही त्रिदंडी के दो टुकड़े कर दिये। खड्ग के प्रहार के प्रभाव से त्रिदंडी का शब स्वर्ण पुरुष बना, श्रावक पुत्र ने उसे देखा और प्रसन्न हुआ, उसके अंग उपांग को काटकर अपने घर में लेकर रखा, और भंडार भर दिया। इस तरह श्री पंच परमेष्ठि मंत्र के प्रभाव से धनाढ्य बना। काम के विषय में मिथ्यादृष्टि पति की श्राविका पत्नी दृष्टांत रूप है कि जिस नमस्कार मंत्र के प्रभाव से सर्प भी पुष्पमाला बन गयी ।।७७६७।। वह इस तरह श्राविका की कथा एक नगर के बाहर के विभाग में एक मिथ्या दृष्टि गृहपति रहता था और उसे धर्म में अत्यंत रागी श्राविका पत्नी थी। उसके ऊपर दूसरी पत्नी से विवाह करने की उसकी भावना थी, परंतु 'एक पत्नी होने से 324 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004037
Book TitleSamveg Rangshala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti Bhinmal
Publication Year
Total Pages436
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy