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________________ प्रस्तावना 'पउमचरिय' प्राकृतभाषानो अनूठो ग्रंथ छे. पउम = पद्म एटले राम. आ रामचरित्र छे. सौथी जुनु जैनरामायण आ छे. आ ग्रंथ, सहु पहेला संपादन जर्मन विद्वान हर्मन जेकोबीए करेलं. ई.स. १९१४मां भावनगरनी आत्मानंद सभाए आनुं प्रकाशन करेलुं. पुनः संपादन आगम प्रभाकर मुनिश्री पुण्यविजय म.ए कहूं. शांतिलाल वोराना हिंदी अनुवाद साथे प्राकृत ग्रंथ परिषद द्वारा ई.स. १९६२ अने १९६८मां बे भागमा प्रकाशित थयु. आ.भ. नरचन्द्रसूरि म.सा.ना प्रयासथी उपरोक्त ग्रंथ, पुनर्मुद्रण आ ज संस्थाए ई.स. २००५मां कयुं छे. प्राकृत ग्रंथ परिषद प्रकाशित भाग-१मां V. M. Kulkarni लिखित Introduction मां अने Dr. K. R. Chandra ए एमना Ph.D. माटेना महानिबंध A Critical Study of Paumacariyam (रीसर्च ईन्स्टीटयूट ओफ प्राकृत जैनोलोजी एन्ड अहिंसा वैशाली मुझफरपुर बिहार द्वारा प्रकाशित)मा 'पउमचरियं' विशे विगते पोतानी रीते चर्चा करी छे. अमे केटलीक वात मूळ ग्रंथ अने आ बे ग्रंथोना आधारे अहीं करीए छीए. ग्रंथकारनो समय अने शाखा सामान्य रीते मोटाभागना ग्रंथकारो पोताना कुल विषे, गुरुपरंपरा विषे अने रचना संवत विषे कशुं लखता नथी होता. सद्भाग्ये पूर्वधर ग्रंथकार श्री विमलसूरिजीए आवी बधी विगतो असंदिग्ध रीते आपी छे. छतां कमनसीबे आधुनिक विद्वानोए एमना समय विषे अने तेओश्री श्वेतांबर शाखाना दिगंबर शाखाना के यापनीय शाखाना होवा विषे भिन्न भिन्न मतो प्रगट कर्या छे. ग्रंथकारे आपेली विगतो आ प्रमाणे छे. "पंचेव य वाससया दुसमाए तीसवरिससंजुत्ता । वीरे सिद्धिमुवगए तओ निबद्धं इमं चरियं ॥ ११८-१०३ ॥ राहु नामायरिओ ससमयपरसमयगहियसहभावो । विजओ य तस्स सीसो नाइलकुलवंसनंदियरो ॥ ११८-११७ ।। Jain Education Interational For Personal & Private Use Only wwwjainelibrary.org
SR No.004027
Book TitlePaumchariyam Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParshvaratnavijay
PublisherOmkarsuri Aradhana Bhavan
Publication Year2012
Total Pages166
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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