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________________ (=) श्री प्रकाशचन्दजी दूगड़ जहाँ अनेक धार्मिक संस्थाओं के कर्मठ कार्यकर्ता, ट्रस्टी व संरक्षक हैं वहाँ आप तप एवं दान की आराधना में भी अग्रणी हैं। आपने २८ वर्ष की आयु में ४५ दिन का उपवास तथा १५, १३, ११ उपवास व अठाइयाँ आदि की तपस्या की है । इतनी छोटी आयु में इतनी बड़ी तपस्याएँ व फिर भी अपना सब कारोबार सँभालते रहना एक आश्चर्य की बात है । आप में दान- भावना भी बहुत प्रबल है । मूक जीवों के प्रति दया तथा गरीबों की सहायता में आपको रुचि है । श्री. दिलीपकुमारजी एवं प्रदीपकुमारजी ने भी ६-६ उपवास किये हैं । परिवार के सभी सदस्यों में तपस्या करने की बड़ी लगन है । यहाँ तक कि नन्हे नन्हे बालक भी निर्जल उपवास करके बड़े प्रसन्न होते हैं । श्री दुलीचन्दजी के सात पुत्रियाँ हैं जो अच्छे-अच्छे स्थानों पर घर की शोभा बढ़ा रही हैं । आनन्द प्रवचन के भाग १२ के प्रकाशन में आपकी तरफ से संपूर्ण आर्थिक अनु दान प्राप्त हुआ है । यह आपकी गुरुभक्ति, दानवीरता और धर्म प्रेम का विशिष्ट परिचायक है। आपके उदार सहयोग के प्रति हम हार्दिक आभार प्रकट करके भविष्य में を भी इसी प्रकार आपका सहयोग प्राप्त होता रहेगा, यही कामना करते हैं । आपका परि वार सुख-समृद्धि के साथ चिरकाल तक धर्म-सेवा करता रहे, यही मंगल-भावना है... Jain Education International मंत्री श्री रत्न जैन पुस्तकालय अहमदनगर (महाराष्ट्र) For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004015
Book TitleAnand Pravachan Part 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Shreechand Surana
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1981
Total Pages378
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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