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३३८ : आनन्द प्रवचन : भाग १२
मात-पितसहस्राणि पुत्रदारशतानि च ।
तवाऽनन्तानि जातानि, कस्य ते कस्य वा भवान् ॥ "माता, पिता के रूप में आपके हजारों जन्म हुए हैं, पुत्र, पत्नी आदि के रूप में भी सैकड़ों जन्म हुए हैं । यों अनन्त बार विभिन्न रूपों में जन्मे हैं । यहाँ कौन किसका रहा है ?"
इस प्रकार पुत्र-पुत्री द्वारा पिता ने धर्मपुनीत वचन ग्रहण किए ।
अन्तिम समय में लोकलज्जावश सेठ के सगे सम्बन्धी भी आए । सेठ का छोटा भाई भी देखा-देखी सेठ का कुशल-मंगल पूछने आया। यह जानकर सेठ ने उसे आदर पूर्वक बिठाया। उसने सेठ से कहा- "बड़े भाई ! बालकों की जरा भी चिन्ता न करना। मैं इन्हें अपने ही बालकों की तरह रखूगा । आप शान्तिपूर्वक परमात्मा में ध्यान लगाएँ।"
भाई के वचन सुनकर सेठ को सन्तोष हुआ । उनकी चिन्ता दूर हुई । जैसे कछुआ अपना अंग सिकोड़ लेता है, वैसे ही सेठ भी सांसारिक मोहमाया से अपना चित्त समेटकर एकमात्र आत्मध्यान में लीन हो गए । शान्तिपूर्वक शरीर छोड़ा। सद्गति प्राप्त की।
छोटे भाई ने उनके पीछे लौकिक क्रियाकर्म करने के लिये उनके घर की बची हई सब वस्तुएँ बेच डालों । सेठ का जो छोटा-सा घर था, वह भी बेच डाला। दोनों बालकों को अपने यहाँ ले गया । चन्द्रभान को उसने अपनी दूकान में लगा दिया और चन्दनबाला को गृह-कार्य में । इस प्रकार चाचा-चाची को केवल रोटी के बदले मुफ्त में दो नौकर मिल गये । चाचा मुफ्त का अहसान जताने लगा। चाची भी कम नहीं थी, वह कठोर स्वभाव की और कपटी थी। पशुओं का सारा काम उसने चन्दनबाला पर डाल दिया। यद्यपि धर्मसंस्कारी चन्दनबाला सब कुछ सहन करती हुई घर के सब काम करती थी। फिर भी उसे चाची की गालियां, ताने, मार-पीट आदि अनेक हृदयविदारक कष्ट सहने पड़ते । चन्दनबाला किसी को भी दोष न देकर अपने ही अशुभकर्मों का दोष मानकर आत्मा को कर्म-बन्धन से बचाने लगी। आखिर तो उसमें सद्धर्म के संस्कार थे।
चन्दनबाला की स्थिति एक नौकरानी से बदतर देखकर दयालु पड़ोसियों ने उसकी चाची को दो शब्द कहे भी, परन्तु इससे तो चाची का पारा और गर्म होगया। उसने चन्दनबाला ही उपालम्भ दिया कि 'तू ही पड़ोसियों के सामने मेरी बदनामी करती है।' यों कहकर वह चन्दनबाला पर और अधिक अत्याचार करने लगी।
एक दिन चन्दनबाला पानी का घड़ा सिर पर रखकर आ रही थी, अचानक लड़ते हुए दो सांड़ों के चपेट में आ गई । इस कारण मिट्टी का घड़ा फूट गया। चाची ने देखा तो वह आगबबूला हो गई और उसे डांटने-फटकारने लगी। चाचा ने अपनी पत्नी को बहुत समझाया, पर वह नहीं समझी। फिर उसे स्वार्थ की दृष्टि से समझाते
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