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________________ ३३२ : आनन्द प्रवचन : भाग १२ लुभावने प्रेयमार्ग से बचना बहुत जरूरी है । धर्म श्रेयमार्ग में गति करने की, आगे बढ़ने की प्रेरणा देता है । आज पूर्व और पश्चिम दोनों ही प्रायः प्रेयमार्ग की ओर तेजी से प्रगति कर रहे हैं । यही कारण है कि मद्य, मांस, द्यूत, व्यभिचार, फैशन और विलास आदि में तेजी से प्रगति हो रही है, भौतिक विज्ञान नित नये आविष्कार कर रहा है । मनुष्य उस प्रगति के अहंकार में फूला नहीं समाता । परन्तु आखिर इसका परिणाम दुःखान्त ही आता है । भौतिक या प्रेयमार्ग की ओर गति करते समय धर्म उस पर अपना वरद अंकुश रखता है, वह कहता है- प्रगति तो हो, पर आत्म - विकास में अवरोध करने वाली न हो । उससे आत्मा पर आवरण न आए, यही देखना धर्म का कार्य है । इसीलिए महर्षि गौतम ने एक ही जीवनसूत्र में कह दिया 'धम्मो सरणं गइ य' धर्म ही शरण है, धर्म ही गति है । आप भी धर्म की शरण में आकर उससे आत्मा की प्रगति की प्रेरणा लें । 00 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004015
Book TitleAnand Pravachan Part 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Shreechand Surana
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1981
Total Pages378
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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