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________________ १३६ | आनन्द प्रवचन : भाग १२ आधीरात को गोमंडल में जाकर गाय-बैलों के नाक, कान, आँख, गलकम्बल आदि काटकर घर ले आता और उसके मांस के शूले बनाकर खाता था। वहाँ से भरकर द्वितीय नरक में पैदा हुआ । वहाँ की तीन सागरोपम की आयु पूर्ण करके इसी नगर में विजय नामक सार्थवाह की पत्नी सुभद्रा की कुक्षि से पैदा हुआ। जन्मते ही इसे कूरडी पर फेंककर फिर वापस ले आए थे, इसलिए इसका नाम उज्झितकुमार रखा। उज्झितकुमार अभी छोटा ही था, तभी उसका पिता विजय सार्थवाह जहाज में सब तरह का माल भर लवण समुद्र के जरिये विदेश यात्रा कर रहा था। बीच में हो तूफान आ जाने पर वह जहाज टूट गया। अब वह अशरण होने से मरणशरण हो गया। उसकी पत्नी भी अत्यन्त शोकसंतप्त होकर आर्तध्यानपूर्वक मर गई। अब रहा केवल उज्झितकुमार ! कोतवाल ने आकर उसे घर से निकालकर वह घर दूसरों को सौंप दिया । उज्झितकुमार अब आवारा फिरता था। वह वाणिज्यग्राम में जूआ खेलता, वेश्या के यहाँ जाता, कोई उसे रोक-टोक करने वाला नहीं था। वह मद्य, मांस, चोरी, जूआ आदि सभी दुर्व्यसनों से ग्रस्त हो गया। नगर की प्रसिद्ध वेश्या कामध्वजा में वह आसक्त हो गया। उस वेश्या के साथ रमण करना उसका नित्यकर्म हो गया। नगर के नृप मित्रराजा की रानी को उदरशूल होने से वह कामध्वजा वेश्या के यहाँ जाने लगा। वहाँ उज्झितकुमार को देख उसे निकलवा दिया। परन्तु उज्झितकुमार वेश्या में इतना आसक्त हो गया था कि वहाँ गए बिना उसे चैन नहीं पड़ता था, वह लुकछिपकर वहाँ जाने लगा। मित्रराजा को पता चला कि उज्झितकुमार फिर कामध्वजा वेश्या के साथ रमण करता है। एक दिन मित्रराजा ने उसे रंगे हाथों पकड़ लिया। उसे गिरफ्तार करवाकर राजा ने अत्यन्त कुपित होकर उसे इतना पीटा कि वह अधमरा हो गया। फिर उसकी कितनी दुर्दशा हुई, यह तो तुम आँखों से देख आएहो। इसके बाद फिर यह नरक, तिथंच आदि कई जन्म लेकर अन्त में मनुष्य-जन्म पाएगा, वहाँ से महाविदेहक्षेत्र से मुक्त होगा। बन्धुओ ! इसी प्रकार उज्झितकुमार जितने-जितने जन्म धारण करेगा उन सबमें प्राप्त कुल का सर्वनाश ही करेगा अथवा कुलगत संस्कार, सुख आदि का सर्वनाश निश्चित ही हो जाएगा । इसलिए किसी भी प्रकार वेश्या-संग नहीं करने की महर्षि गौतम की शिक्षा है वेसा पसत्तस्स कुलस्स णासो । –वेश्यागमन से कुल का नाश हो जाता है। 00 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004015
Book TitleAnand Pravachan Part 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Shreechand Surana
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1981
Total Pages378
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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