________________
(
१० )
प्रवचनों में सिर्फ उपदेशक का उपदेश - कौशल ही नहीं, बल्कि एक विचारक का विचार वैभव तथा अनुशीलनात्मक दृष्टि भी है । इससे प्रवचनों का स्तर काफी ऊँचा व विचार प्रधान बन गया है ।
इन प्रवचनों को पढ़ते समय प्रबुद्ध पाठकों को ऐसा अनुभव भी होगा कि इन प्रवचनों में उपन्यास और कहानी साहित्य की तरह सरसता है, दार्शनिक ग्रन्थों की तरह गम्भीरता है । यदि एक शब्द में कह दिया जाय तो सरलता, सरसता और गम्भीरता का मधुर समन्वय हुआ है । ऐसे उत्कृष्ट साहित्य के लिए पाठक आचार्य प्रवर का सदा ऋणी रहेगा तो साथ ही ऐसे सम्पादक के श्रम को भी विस्मृत नहीं हो सकेगा ।
मुझे आशा ही नहीं अपितु दृढ़ विश्वास है कि प्रस्तुत आनन्द प्रवचनों के ये भाग सर्वत्र समादृत होंगे । इन्हें अधिक से अधिक जिज्ञासु पढ़कर अपने जीवन को चमकायेंगे |
- देवेन्द्र मुनि शास्त्री
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org