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________________ ४०२ आनन्द प्रवचन : भाग १० 'मैं नहीं जानता कि कोई स्त्री या पुरुष इधर से गया है । हाँ; इस महामार्ग से एक हड्डियों का समूह तो अवश्य जा रहा था।' ___ सचमुच, शीलवान की दृष्टि में स्त्री-पुरुष कोई नहीं रहता, उसकी दृष्टि में सिर्फ आत्मा रहती है। शीलवान आत्मा : भय और प्रलोभनों के बीच अडिग शीलवान आत्मा अपने शील पर सुदृढ़ होती है । वह किसी भी भय या प्रलो. भन से विचलित नहीं होती। वह शीलरूपी धन को सुरक्षित रखती है । उसके लिये शील से बढ़कर कोई भी वस्तु संसार में बहुमूल्य नहीं होती। कर्णाटक प्रान्त के एक छोटे से गांव उद्रुतड़ी में साधारण घर में जन्मी अक्का महादेवी अपने शील की सुरक्षा के लिए प्राणप्रण से जुटी हुई थी। उसके पिता ने उसे संस्कृत पढ़ायी, जिससे उसमें धार्मिक संस्कारों और आध्यात्मिक जिज्ञासाओं में जोर पकड़ लिया। अक्का ने सत्य की खोज का निश्चय कर लिया, तदनुसार वह ईश्वर-भक्ति, योग-साधना और योगाभ्यास में लग गई। उसके फलस्वरूप अक्का महादेवी ने यह प्रतिज्ञा की कि वह आजीवन ब्रह्मचारिणी रहेगी, और ईश्वर-उपासना तथा समाज-सेवा में रहकर अपनी आत्मिक सम्पदा को बढ़ाएगी। अक्का का सौन्दर्य अद्भुत था, फिर संयम और शील की तेजस्विता ने उसमें चार चाँद लगा दिये । राजकुमारियों से उसके सौन्दर्य की तुलना की जाने लगी। कर्णाटक के तत्कालीन राजा कौशिक को अक्का महादेवी के अद्वितीय सौन्दर्थ का पता चला तो उसने उसके समक्ष विवाह का प्रस्ताव रखा । साधारण लोगों ने इसे अक्का का महान सौभाग्य समझा, परन्तु अक्का ने इस प्रलोभन को भगवान के द्वारा उपस्थित की हुई परीक्षा समझी। विचार किया-'सांसारिकता और धर्मसेवा दोनों साथ-साथ नहीं चल सकतीं, भोग और योग में कोई सम्बन्ध नहीं, यदि अपनी आध्यात्मिक शक्तियों को बढ़ाना है, अपनी धर्मप्रधान संस्कृति को पुनरुज्जीवित करना है, तो सांसारिक विषय-सुखोपभोग को बढ़ावा नहीं दिया जा सकता। सांसारिक इच्छाओं का बलिदान करके ही उस परम लक्ष्य को प्राप्त किया जा सकता है।' इस प्रकार का दृढ़ विचार करके अक्का ने कौशिक राजा का प्रस्ताव ठुकरा दिया । विषय-वासनाओं से घिरे कामुक हृदय कौशिक ने इसे अपना अपमान समझा। उसने अक्का के माता-पिता को बन्दी बनाकर कारागार में डलवा दिया और फिर एक बार अक्का के पास सन्देश भेजा कि अब भी सम्बन्ध स्वीकार कर लो, अन्यथा तुम्हारे माता-पिता का वध तुम्हारे सामने किया जायेगा। अक्का ने माता-पिता को बन्धनमुक्त कराने के लिहाज से एक शर्त पर कौशिक का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया कि 'वह विवाह होने पर भी अपने शील, संयम, Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004013
Book TitleAnand Pravachan Part 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Shreechand Surana
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1980
Total Pages430
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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