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आनन्द प्रवचन : भाग १०
जनता को यदि इस तरह तत्काल न्याय मिले, उसकी समस्याएँ हल हों तो दुःशासन के बदले न सिर्फ सुशासन की ही आशा पूरी होगी, बल्कि लोकतन्त्र की जड़ें भी मजबूत होंगी।
अधिकारियों को सदैव ध्यान रखना चाहिए कि वे जनता के द्वारा ही अधिकारी बनते हैं, यदि वे जनता की भावनाओं का निरादर करेंगे, उससे सहयोग लेकर भी उसकी उपेक्षा करेंगे तो वह उन्हें उखाड़ फेंकेगी। अधिप को मौका आने पर विषपान भी करना पड़ता है
जैसे मनुष्यों में अधिप होते हैं; वैसे ही देवों में भी होते हैं, क्योंकि उसके बिना देवों की सुरक्षा, विकास और उन्नति होनी कठिन होती है । देवों ने मिलकर महादेव को अपना अधिपति चुना ? पुराणों में इसकी दिलचस्प कहानी है ।
सभी देवों और असुरों ने अमृत के लिए समुद्र मंथन किया। मंदराचल को मथानी का दण्ड और शेषनाग को मथानी की डोरी बनाया। समुद्रमंथन करने पर १४ रत्न निकले । सर्वप्रथम कालकूट विष निकला। उसको जो भी पीयेगा तो वह अमर तो क्या बनेगा, तुरन्त मर जायेगा। यह देख देव बड़े विचार में पड़े कि क्या किया जाये ? विष्णुजी ने कहा-तुम लोग महादेवजी के पास जाओ, वे इसे पी लेंगे । वे ही इसे पीने में समर्थ है। देव पहुँचे महादेवजी के पास और उनसे उस कालकूट विष को पीने की प्रार्थना की । महादेवजी ने सब देवों के हित में वह विषपान कर लिया। उन्होंने विष को अपने गले में ही रखा, नीचे नहीं उतारा। इसीलिए वे नीलकण्ठ कहलाये। इस प्रकार विषपान करने के कारण शंकरजी को महादेव का पद मिला और सब देवों ने उन्हें अपना नेता भी माना।
पुराण के इस आलंकारिक रूपक के आवरण को हटाकर यदि हम उसके वास्तविक रहस्य को खोजें तो यही प्रतीत होगा कि जो नेता, अधिपति या अधिकारी बनता है, उसे सर्वप्रथम ऐसे जहर के प्याले पीने पड़ते हैं । नेता को पारस्परिक संघर्ष से उत्पन्न उपालम्भ, आक्षेप, दोषारोप तथा राग-द्वेष रूपी विष को पी जाना पड़ता है, शान्ति से, समभाव से । तभी जनता उसे अपना नेता या अधिप मानती है । मुहावरा है “सौ-सौ टंकी सहके महादेव बनते हैं।" —जो कष्ट सहता है, वही बड़ा बनता है। अधिप दुष्टता त्यागें, शिष्टता अपनाएं
मानव-जीवन के किसी भी क्षेत्र में कोई अधिप हो, चाहे उसके हाथ में थोड़ेसे अधिकार हों, उसे कर्तव्यनिष्ठ, सेवाभावी, पर-दुःखकातर, हितैषी, जनवत्सल और त्याग-बलिदान के लिए उद्यत होना अत्यन्त आवश्यक है । तभी वह जन-जन के हृदय में स्थान पा सकेगा, अन्यथा कर्तव्यविहीन, सेवा से उदासीन, परदुःख से भागने वाला, स्वार्थी, कायर एवं प्राणमोही व्यक्ति कदाचित् निकड़मबाजी एवं चालाकी से किसी
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