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आनन्द प्रवचन : भाग १०
___'जेम्स' यदि शरारत, उच्छृखलता या उद्दण्डता करता है तो भी उसको कुछ न कहो, नहीं तो उसके मन में ग्रन्थि निर्माण हो जाएगी। मोहन ने माँ की जेब से पैसे निकाल लिये । मां ने पूछा-"मेरी जेब से तूने पैसे क्यों चुराये ?"
__ मोहन ने उत्तर दिया-"यह चोरी का प्रश्न नहीं है। मैं तो चोरी करने की कला सीखता था।" मां ने मनोविज्ञानवेत्ता से परामर्श किया तो उसने भी यही कहा- "लड़के को कुछ मत कहो।" 'मानव अपने कृत्य के लिए उत्तरदायी नहीं है, इस विचारधारा से अमेरिकन महिलाएँ उलझन में पड़ गई हैं। वह अनुचित आचरण या व्यवहार के लिए किसी को कुछ भी नहीं कह सकतीं। अपने पति और पुत्र को भी उलाहना नहीं दे सकतीं। यह है-प्रगतिशील राष्ट्र की सामाजिक मनो. दशा । वास्तव में 'परिस्थितिवाद' की यह विचारधारा बिलकुल ही निराधार है। अपनी भूल, गलती या अपराधों का टोकरा दूसरे के सिर पर डाल देना, अपने अपराध के लिए स्वयं जिम्मेदार न बनना, कितनी खतरनाक और अराजकता फैलाने वाली विचारधारा है।
भारतीय धर्मशास्त्रों ने भ्रान्त ईश्वरवाद या इस अमेरिकन परिस्थितिवाद का डटकर विरोध किया है। यहां तो यह साफ-साफ बता दिया है कि मनुष्य अपने कर्मों को स्वयं ही करता है और उसका भोक्ता भी वह स्वयं ही है। देखिये उत्तराध्ययन सूत्र में स्पष्ट कहा है
__अप्पा कत्ता विकत्ता य दुहाण य सुहाण य ।
अप्पामित्त ममित्तं च दुप्पट्टिओ, सुपढिओ॥ 'आत्मा ही सुखों और दुःखों का कर्ता है, हर्ता भी आत्मा ही है। सन्मार्ग में प्रतिष्ठित आत्मा ही मित्र है और कुमार्ग में प्रतिष्ठित आत्मा शत्रु है।' वैदिक धर्म के मूर्धन्य ग्रन्थ गीता में भी इसी मत का प्रतिपादन किया है
उद्धरेदात्मनाऽऽस्मानमात्मानमवसादयेत् ।
आत्मैव ह्यात्मनो बन्धुरात्मैव रिपुरात्मनः॥ 'मनुष्य अपनी आत्मा का उद्धार भी अपनी आत्मा से ही करता है और अपनी आत्मा का पतन भी अपनी आत्मा से ही करता है। इस दृष्टि से आत्मा ही आत्मा का बन्धु है और आत्मा ही आत्मा का शत्रु है।'
भ्रान्त ईश्वरवाद और परिस्थितिवाद का इस सिद्धान्त द्वारा खण्डन हो जाता है। चरकसंहिता में भी इन दोनों वादों का खण्डन मिलता है
आत्मानमेव मन्येत कर्तारं सुखदुःखयोः। 'सुख और दुःख का कर्ता आत्मा को ही समझो।'
अगर ईश्वर अच्छे-बुरे कार्य के लिए जिम्मेदार है, तो उसका शुभाशुभ फल भी ईश्वर को ही भोगना चाहिए, उस कार्य के करने वाले को नहीं। परन्तु अनुभव इससे उल्टा नजर आता है । मिर्ची एक व्यक्ति खाता है, और मुंह ईश्वर का जलेगा,
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