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पतिव्रता लज्जायुक्त सोहती ३६६ से विरक्त होकर भागवती दीक्षा ग्रहण की। तीव्रतप तथा रत्नत्रय की, अराधना करके सद्गति में पहुँची। वरदत्त और सागर दोनों को अत्यन्त पश्चात्ताप हुआ।
बन्धुओ ! पतिव्रता स्त्री का मुख्य गुण लज्जा है, यह जिनमती के उदाहरण से आप समझ गये होगे । अगर जिनमती में लज्जा का गुण न होता तो वह स्वयं उद्दण्ड होकर अपने पति और उसके मित्र को आड़े हाथों लेती, उनकी फजीहत करवाती । इसीलिए महर्षि गौतम ने कहा है
'लज्जाजुआ सोहइ एगपत्ती' पतिव्रता स्त्री लज्जायुक्त होने पर ही शोभा पाती है ।
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