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________________ ३६६ आनन्द प्रवचन : भाम १० लज्जापज्जत्त पसाहणाई, परभित्तिणिप्पिवासाइं। अविणअ-दुम्मेधाई, धण्णाण घरे कलत्ताई ॥ "लज्जा ही जिनकी पर्याप्त प्रसाधन सामग्री है, दूसरे से भरण-पोषण की आशा नहीं रखती, और अविनय-बुद्धि जिनके पास आनी दुष्कर है, ऐसी नारियां भाग्यशाली पुरुषों के घर में ही होती हैं। लज्जा को पवित्रता का मुख्य अंग बताते हुए कहा है तावत्कुलस्त्रीमर्यादा, यावलज्जावगुंठनम् । हृते तस्मिन् कुलस्त्रीभ्यो घरं वेश्यांगनाजनः । "जब तक लज्जा का अवगुंठन है, तब तक कुलांगना की मर्यादा सुरक्षित है। लज्जा के नष्ट होने पर तो कुलस्त्रियों से वारांगना ही अच्छी हैं।" लज्जागुण के आश्रित अन्य मुख्य गुण पतिव्रता स्त्री में लज्जा का गुण शिरोमणि है; उसके आश्रित मुख्य गुणों का वर्णन मैं कर चुका हूँ। लज्जा गुण न हो तो ये सारे गुण औपचारिक रह जाते हैं। एक आचार्य ने पतिव्रता के सम्बन्ध में ६ गुण बताए हैं कार्येषु मंत्री, करणेषु दासी, मोज्येषु माता, शयनेषु रम्मा। धर्मानुकूला क्षमया धरित्री, भार्या च षाड्गुण्यवतीह दुर्लभा ।। षट्गुणों वाली पतिव्रता स्त्री इस संसार में दुर्लभ है(१) कार्यों में परामर्शदात्री मंत्री। (२) कार्यों को सम्पन्न करने में दासी। (३) भोजन के समय माता। (४) शयन के समय रम्भा । (५) धर्म का आचरण कराने में गुरु के समान । (६) क्षमा में पृथ्वी के समान । इसके अतिरिक्त पतिव्रता में आत्मसमर्पण, अनन्यभक्ति, संकट आने पर प्राणार्पण की तैयारी, धर्मपरायणता, पति को धर्ममार्ग में प्रेरित करने का पुरुषार्थ, पति के कार्यों में पूरा सक्रिय सहयोग, परस्पर विश्वास, पतीच्छानुगामिता आदि गुण मुख्य रूप से होने चाहिए । पतिव्रता नारी समय आने पर अपनी प्रतिष्ठा, प्राण और परिग्रह सर्वस्व होमने के लिए कैसे उद्यत हो जाती है, इसके लिए एक प्राचीन उदाहरण लीजिए वरदत्त अद्भुत नगर के राजमान्य वसुदत्त सेठ का इककोता पुत्र था। सरल. हृदय युवक वरदत्त का एक बालमित्र था-सागर, जो अत्यन्त कपटी था। एक बार अपने भवन के नीचे गेंद खेलती एक रूपलावण्यवती कन्या को देखकर बरदत्त मुग्ध हो गया। सागर से पूछने पर पता चला कि वह बन्धुदत्त सेठ की जिनमती नाम की Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004013
Book TitleAnand Pravachan Part 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Shreechand Surana
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1980
Total Pages430
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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