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________________ २ आनन्द प्रवचन : भाग १० भी आवश्यक था कि सामान्य बुद्धि का मानव जीवन में आने वाली अटपटी और अबूझ समस्याओं को हल नहीं कर पाता था, अधिपति अपनी बौद्धिक योग्यता और क्षमता के आधार पर उन समस्याओं को हल करता और उचित कानून एवं दण्डव्यवस्था भी करता था। .. जब समाज और राज्य का निर्माण नहीं हुआ था, उस युग में कुलकर या मनु की व्यवस्था थी। कुलकर कुलों की समस्याएँ हल करता था, यथोचित परामर्श देता था, वह जनता के हित के लिए अपनी निःस्वार्थ सेवाएँ देता था। परन्तु यौगलिक काल की परिसमाप्ति के समय अनेक झंझट और संघर्ष यौगलिक जनता में पैदा हो गये थे। चूंकि कर्मभूमि का प्रारम्भ हो गया था, भोगभूमि समाप्तप्राय थी। जनता में जीवनयापन के साधनों के लिए आपस में तू-तू-मैं-मैं होने लगी थी। विग्रह भी होने लगे थे । जनता इन प्रतिदिन के संघर्षों व झंझटों से ऊब गई थी और चाहती थी कि किसी तरह कोई हमारा आधिपत्य स्वीकारे और हमें जीवनयापन के लिए सही मार्गदर्शन दे । अतः उस समय की भोली-भाली साधारण बुद्धि की जनता अपने कुलकर नाभिराय के पास यह जटिल प्रश्न लेकर पहुँची। नाभिराय ने सब कुछ सुनकर कहा-"तुम सब लोग ऋषभ के पास जाओ। वह कुशल, बुद्धिमान और महान् शक्तिशाली है, तुम्हारी सभी समस्याओं का वह शीघ्र समुचित हल कर देगा।" अतः यौगलिक जनता आशान्वित होकर भावी तीर्थंकर और वर्तमान में नाभिराय कुलकर के पुत्र ऋषभदेव के पास पहुँची । जनता ने उन्हें अपना नेतृत्व और आधिपत्य सौंपा । साथ ही उन्हें अधिकार दिये कि “आप जो भी कुछ हमारे हित के लिए करेंगे, वह हमें मंजूर होगा ।" आगे का इतिहास काफी लम्बा है। मुझे तो आपको यह बताना था कि मनुष्यों ने आदिमकाल में अपना अधिपति (अधिप) कैसे चुना और उसे सर्वस्व अधिकार कैसे सौंपे ? संक्षेप में इतना ही कहूँगा कि ऋषभदेव प्रथम राजा बने, उन्होंने वर्ण-व्यवस्था की। पारिवारिक जीवन से लेकर सामाजिक, राष्ट्रीय और आध्यात्मिक आदि सभी जीवन-क्षेत्रों के संगठन बनाये। उनके नियमोपनियम बनाये । असि, मसि, कृषि इन तीन मूल आजीविकाओं के आधार पर अन्य कलाएँ और शिल्प सिखाये । न्याय और सुरक्षा की सुदृढ़ व्यवस्था की । उस समय राजा ऋषभदेव ने तीन प्रकार के दण्ड अपराधियों के लिए नियत किये थे-हकार, मकार और धिक्कार । इतना ही दण्ड उस समय की जनता के लिए पर्याप्त था। वैदिक ग्रन्थों में 'मनु' राजा कैसे बने ? इसकी रोचक पौराणिक कहानी है। कहते हैं कि मनु जंगल में तपस्या एवं भगवद् भजन कर रहे थे। उन दिनों में कोई राजा न था। इसलिए प्रजा में बहुत अंधेरगर्दी चलती थी। इसलिए प्रजा को यह लगा कि मनु महाराज अपने राजा बन जाएँ तो अच्छा हो। लोग उनके पास पहुँचे और सविनय निवेदन किया-"देव ! कृपा करके आप हमें मार्गदर्शन दीजिए।" Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004013
Book TitleAnand Pravachan Part 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Shreechand Surana
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1980
Total Pages430
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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