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आनन्द प्रवचन : भाग १०
बादशाह ने असहिष्णु होकर कहा - " आप अपनी बात रहने दें। आपको हमारी बात माननी ही पड़ेगी। हम राजा हैं। राजा प्रजा के हित की बात कहता है, वह प्रजा के हर एक व्यक्ति को माननी ही पड़ती है ।"
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नूरजहाँ ने देखा कि बात हठ पर चढ़ गई है । अतः उसने मुनि को नम्रता से समझाते हुए कहा – “ योगिराज ! इस समय आप बादशाह सलामत की बात मान लें । भोग की उम्र में योग में जिंदगी की बर्बाद न करें । समय पक जाने दें। फिर आपको योग के मार्ग पर जाने से कोई नहीं रोक सकेगा ।"
मुनि बोले - "इस जिंदगी का क्या भरोसा ? क्या आप खुद नहीं जानतीं कि बल्ख के राजा ने जवानी में ही संयम मार्ग अंगीकार किया, फकीरी धारण कर ली थी। उम्र छोटी हो या बड़ी, इसका कोई महत्त्व नहीं । महत्त्व की बात है - मन की तैयारी । और ऐसी तैयारी तो छोटी उम्र में ही अच्छी हो सकती है । इसी उम्र में तैयारी करने से भोग-विलास में समय व शक्ति बर्बाद होने से रुक सकती है । आप अपनी बात छोड़ दें, मुझे अपने चारित्रपालन के मार्ग पर अपनी योग-साधना में मदद मिलनी चाहिए थी, रहे हैं।"
जाने दें
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। आपसे तो मुझे
जिसके
बजाय
आप मुझे रोक
बादशाह और बेगम दोनों समझ गये कि यह अपने विचारों में पक्के हैं । फिर भी बादशाह अपना हठ छोड़ने को तैयार न था । उसने गुस्से में आकर कहा - "हमारे हुक्म का अनादर करने का नतीजा तो आप जानते हैं न ?” युवक-मुनि ने दृढ़ता से उत्तर दिया- " मैं तो इतना ही जानता हूँ करने में जो नुकसान है, उसकी अपेक्षा सान है ।"
कि अपनी आत्मा की आपके हुक्म को न
आज्ञा का उल्लंघन मानने में कम नुक
बादशाह ने तिरस्कारपूर्वक कहा - "आपका दुःखद भविष्य आपको भान भुला रहा मालूम होता है ।"
मुनि ने शान्तभाव से कहा - " राजन् ! मुझे इसमें अपनी चारित्र ( संयम ) साधना की अग्निपरीक्षा होती लगती है । मेरे देव- गुरु मुझे इस परीक्षा से पार उतारें ! बाकी तो आपको मैं कैसे रोक सकता हूँ । पर इतना अवश्य याद रखेंआपकी आज्ञा के पालन से न तो मेरा ही भला है, न आपका और न दुनिया का ।"
एक ओर चारित्रवान् साधु थे तो दूसरी ओर बादशाह । दोनों ही अपनी बात पर दृढ़ थे । राजहठ और योगीहठ को टक्कर थी । इसमें से चिनगारी निकलने की देर थी ।
"बस,
ठीक है, आप अपनी इस जिद का परिणाम भोगने के लिए तैयार रहें ।" यों कहकर सम्राट् जहाँगीर ने अपने राजहस्ती को तुरन्त लाने का हुक्म दिया । मौत का अवतार-सा मतवाला राजहस्ती सामने खड़ा है, उसे शराब पिला कर मदोन्मत्त बना दिया गया है, उसके ठीक सामने ही निर्भीक, शान्त व स्वस्थ युवक
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