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________________ प्रशम की शोभा : समाधियोग-१ १८७ पाउलिंग । उन्हें दो बार विश्व-शान्ति के प्रयास के लिए नोबल पुरस्कार दिया गया था। उन्होंने दोनों पुरस्कारों का प्रयोग अपने व्यक्तिगत लाभ के लिए नहीं करके विश्वशान्ति के प्रयत्नों के लिए किया। प्रशान्त महासागर के तट पर 'लास एंजिल्स' शहर के निकटवर्ती 'पासादेना' नामक स्थान पर इनकी अपनी प्रयोगशाला है, जिसमें उन्होंने अणुविद्या पर वैज्ञानिक अन्वेषण करके अनेक नई जानकारियां दी हैं। बालकों के-से सरल इस महान् वैज्ञानिक ने सर्वप्रथम पं० जवाहरलाल नेहरू को आणविक विस्फोट समाप्त करने की अपील का समर्थन किया था। इन्होंने बताया कि आणविक शक्ति को मानव-कल्याण, चिकित्सा, उद्योग, उत्पादन और रसायन-निर्माण के कार्यों में लगाकर उसका सदुपयोग विश्व शान्ति के लिए किया जाना चाहिए, अशान्ति फैलाने के लिए नहीं। एटमी धमाकों से जो जहरीली गैस पैदा होती है, इससे सारे संसार के बच्चे निर्बल होंगे, कई रोग और नई बीमारियां फैलेंगी, अकाल और अनावृष्टि के भीषण दृश्य उपस्थित होंगे । उन्होंने विश्व-शान्ति के इस भगीरथ प्रयत्न के दौरान कई बार अकेले ही वाशिंगटन में ह्वाइट हाउस के सामने राष्ट्रपति के घर पर धरना दिया। राष्ट्रपति ने इस अकेले विद्वान और विश्व शान्तिप्रयासक को यथायोग्य उपाय करने का आश्वासन भी दिया। अणु-आयुधों के प्रसार को रोकने के लिए भी डा. पाउलिंग ने उन सब शक्तियों को जुटाया, सारे संसार का दौरा किया, ११ हजार प्रतिष्ठित वैज्ञानिकों, साहित्यिकों और शिक्षाशास्त्रियों के हस्ताक्षरों की एक संयुक्त अपील की । उन्हें इस महान् शान्ति-कार्य में पर्याप्त सफलता भी मिली। डा. पाउलिंग और उनकी धर्मपत्नी ने अपनी निजी सुख-सुविधाएं छोड़कर सादा रहन-सहन स्वीकार किया और सारा जीवन विश्व-शान्ति के प्रयासों में खपा दिया । उनके इस प्रयत्न को हम प्रशम-साधना का अंग मान सकते हैं । यद्यपि प्रशमसाधना आन्तरिक वस्तु है, तथापि ऐसे विश्व-शान्तिप्रयासकों के आन्तरिक जीवन में निहित प्रशम ने ही उन्हें विश्व-शान्ति के प्रयास के लिए प्रेरित किया । 'शम' के लिए अवस्था की मर्यादा नहीं कई लोगों का यह कहना है कि अभी जवानी या प्रौढ़ावस्था में प्रशम का विचार करने की क्या आवश्यकता है ? जब बुढ़ापा आएगा, इन्द्रियाँ क्षीण हो आएंगी, शक्तियाँ कुण्ठित हो जाएँगी, तब अपने आप ही क्रोध, काम आदि मिट जाएँगे और जीवन प्रशान्त हो जाएगा। परन्तु उसे कोई भी प्रशम नहीं कहेगा, उस शक्ति-क्षीण व्यक्ति को कौन प्रशान्त कहने को तैयार होगा ? क्योंकि प्रशम रत्नत्रय की साधना से प्राप्त होता है, अनायास ही नहीं । एक नीतिकार ने वृद्धावस्था में प्रशान्त हुए व्यक्ति पर कटाक्ष करते हुए कहा है Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004013
Book TitleAnand Pravachan Part 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Shreechand Surana
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1980
Total Pages430
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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