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________________ १४ ४८. उग्रतप की शोभा : क्षान्ति-२ उग्रतप: जीवन में आवश्यक और उपादेय क्यों ? १५४, उग्रतप के प्राप्त हुए अवसर को चूकिये मत १५७, उग्रतपश्चरण की शक्ति कैसे और कहाँ से ? १५६, उग्रतप की शक्ति में शंकित मेघमुनि का समाधान १६३, उग्रतपःशक्ति का अचूक प्रभाव १६५, उग्रतप के साथ क्षान्ति से ही आत्मिक महाशक्ति की प्राप्ति १६६, क्षान्ति : उग्रतप की शोभा १६६, क्षान्ति के सात अंग : उग्रतपस्वी के आभूषण १६७, उग्रतप के साथ क्रोधादि हों तो ? १६८, उग्रतप के साथ क्रोधादि क्यों लग जाते हैं १७१ क्षमा में उग्रतप की शोभा सन्निहित है १७२, क्षमाधारी मुनि कीर्तिधर और सुकोशल का दृष्टान्त १७४ । ४६. प्रशम की शोभा : समाधियोग - १ प्रशम की उपयोगिता और महत्ता १७७, प्रशम की आवश्यकता साधु और गृहस्थ- दोनों को १८०, प्रशमयुक्त जीवन क्या करता है ? १८२, प्रशम क्या है, क्या नहीं ? १८३, शम का प्रथम लक्षण : स्वभाव - रमण १८३, शम-ज्ञान का परिपाक १८४, शम : शुद्ध आत्मनिष्ठा १८५, शम के लिए अवस्था की मर्यादा नहीं १८७, प्रशमशरीर से या मन से १८८, अंगच्छेदन - प्रथम का मार्ग नहीं १८६, नशे की मस्ती : कितनी सस्ती १९१, प्रशम कहाँ और किसमें ? १६१, प्रशम आन्तरिक वस्तु है १६४ । ? ५०. प्रशम की शोभा : समाधियोग - २ १५४-१७६ Jain Education International For Personal & Private Use Only १७७-१९४ प्रथम प्राप्ति का त्रयात्मक पथ १६५, प्रथम पथ - पक्की श्रद्धा या निष्ठा १६६, द्वितीय पथ - सच्चा ज्ञान १६६, तृतीय पथ - उस पर आचरण १६७, प्रशम-प्राप्ति में बाधक तत्व १६८, प्रशम प्राप्ति का एक बाधक कारण मनुष्य की आवश्यकताओं और इच्छाओं में वृद्धि १६९, प्रतिकूल - अप्रिय परिस्थितियाँ भी बाधक २०१, भविष्य की दुश्चिन्ता : प्रशम बाधक २०२, असन्तोष : प्रशम का बाधक २०३, असन्तोष उत्पन्न होने के सात कारण २०३, महत्वाकांक्षा : प्रशम में CTET २०३, अशान्ति के उत्पादक अथवा प्रशम में बाधक - अज्ञान, अहंता, असहयोग एवं अभाव २०४, असहयोगी भावना : अशान्ति का निमित्त २०५, प्रशम - प्राप्ति में साधक उपाय २०६, प्रथम उपाय - विकल्पों को मन में न आने देना २०६, दूसरा उपाय - आत्मभाव में रमण करना २०६, मानसिक प्रशम का हेतु मैत्रीभावना २०६, वाचिक प्रशम का हेतु मौन अथवा वाणी का संयम २०७, कायिक प्रशम का हेतु, शरीर की संतुलित चेष्टाएँ २०७, प्रशम का मूल त्याग में है २०७, प्रशम का १६५-२१८ www.jainelibrary.org
SR No.004013
Book TitleAnand Pravachan Part 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Shreechand Surana
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1980
Total Pages430
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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