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आनन्द प्रवचन : भाग ६
"अच्छा तो पूछकर आओ।" बादशाह ने कहा।
इस प्रकार साले साहब को चक्कर काटते-काटते सारी रात हो गई। चलतेचलते उसके पैर थककर चूर-चूर हो गए थे।
पौ फटते ही प्रतिदिन के नियमानुसार बीरबल बादशाह को मुजरा करने आया तो बादशाह ने उससे कहा- “जरा पता लगाकर आओ कि ये बाजे कहाँ बज रहे हैं ? तुम खुद जाकर पूछ करके आना?" बीरबल ने सोचा - "आज कोई-न-कोई रहस्यमय बात है, तभी तो जो काम एक सिपाही से हो सकता है, उसके लिए बादशाह ने स्वयं मुझे आदेश दिया है।" बीरबल तुरन्त विवाह-स्थल पर जा पहुँचा और विवाह के प्रमुख व्यवस्थापक को बुलाकर प्रत्येक बात नोट करने लगा। पौन घण्टे के अन्दर पूरी फहरिश्त तैयार करके अपनी जेब में रखकर बादशाह के समक्ष उपस्थित हुआ। इधर बेगम सोच रही थी कि वीरबल को भी अनेक सवाल पूछकर मैं भाई की तरह ५-१० चक्कर खिलाऊँगी । बीरबल ने बादशाह से कहा- "हजूर ! ये बाजे विवाह के उपलक्ष में बज रहे हैं। विवाह हिन्दुओं में अमुक जाति में है।"
बादशाह-"किसका है ?" वीरवल–'बेटी का है, हजूर !" . बादशाह- "बारात कहाँ से आएगी ?" वीरबल-हजूर ! इलाहाबाद से आएगी।"
इस प्रकार एक-एक करके बादशाह ने वे सारे प्रश्न पूछ लिए, जो साले साहब से पूछे थे और बीरबल ने सबका यथोचित उत्तर दिया। अब बादशाह ने बेगम से भी कहा -“तू भी पूछ ले जो कुछ भी पूछना हो।" बेगम ने भी इधरउधर के बहुत-से सवाल पूछे, पर बीरबल के पास सबके उत्तर मौजूद थे। आखिर बेगम पूछती-पूछती उकता गई। तब बीरबल ने अपनी जेब से वह प्रश्नसूची निकाली और कहा -“जहाँपनाह ! आपने तो अभी तक थोड़े से प्रश्न पूछे हैं, मैं तो करीब १५० प्रश्नों के उत्तर लिखकर ले आया हूँ।"
बेगम को भी बीरबल की इतनी तीक्ष्ण एवं विलक्षण बुद्धि का लोहा मानना पड़ा। अन्त में बादशाह ने कहा- "ऊँचे पद और वेतन बुद्धिमानी से मिलते हैं, केवल सम्बन्धी होने से ही मन्दबुद्धि, अयोग्य व्यक्ति को उच्च पद या वेतन नहीं मिला करते।"
बेगम को अपनी हार माननी पड़ी।
बन्धुओ ! मैं कह रहा था कि जिसकी बुद्धि निर्मल एवं स्फुरणाशक्ति एवं निर्णयशक्ति से युक्त होती है, वही व्यक्ति संसार में और आध्यात्मिक जगत में सम्मान पाता है। ऐसी स्थिरबुद्धि किसी विरले भाग्यशाली को ही मिलती है। ऐसी बुद्धि कोरे शारीरिक बल से प्राप्त नहीं होती। इसीलिए नीतिकार कहते हैं
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