________________
सुख का मूल : सन्तोष
३७
वास्तविक सुख धन, जमीन, सन्तान, स्त्री, बाग-बगीचा, जमीन-जायदाद या बंगलाकोठी, कार आदि होने से प्राप्त नहीं होता। यह निरा भ्रम है कि धन, वैभव और सत्ता आदि से सम्पन्न मनुष्य सुखी हैं।
हाँ, तो सोलन के पास एक व्यक्ति आया, जो अपने आपको बहुत दुःखी बताता था। उसने सोलन से कहा- "मैं बहुत दुःखी हूँ। बहुत दूर से आपका नाम सुनकर आया हूँ कि आप सुख का मंत्र देते हैं जिससे आदमी सुखी हो जाता है । कृपया मुझे भी सुख का मँत्र दीजिए।" सोलन उसकी बात पर हँसा और कहने लगा
—''मेरे पास ऐसा कोई भी मंत्र नहीं है, जिससे तुम सुखी हो जाओ।" आगन्तुक बोला- "आप टालमटूल न करें, मैं बहुत दूर से आया हूँ तो मंत्र लेकर ही जाऊँगा।"
___ सोलन ने सोचा - 'अगर इसे तत्त्व-ज्ञान की बात कहूँगा तो यह समझेगा नहीं और कुछ त्याग, तप आदि करने की बात कहूँगा तो यह अशक्य कहकर ठुकरा देगा। अतः यह अपने अन्तःस्फुरित चिन्तन से समझ सके ऐसा उपाय बताना चाहिए।' कुछ सोचकर सोलन ने आगन्तुक से कहा-"अच्छा, मंत्र तो मैं तब दूंगा, जब तुम किसी सुखी आदमी का कोट ले आओगे।"
आगन्तुक ने कहा- "बस इतनी-सी बात है, मैं अभी लाता हूँ सुखी का कोट । एथेंस में बड़े-बड़े धनाढ्य जमींदार, व्यापारी हैं, उनसे कहने की देर है, वे कोट दे देंगे।" उसकी स्थूलदृष्टि में सुखी वह, जो सबसे अधिक धन, सत्ता, जमीन, व्यापार आदि में से किसी से सम्पन्न हो । वह दौड़ा-दौड़ा पहुँचा एथेंस नगर के एक प्रसिद्ध धनिक के यहाँ । द्वार पर खड़े आदमी से कहा- “अन्दर जाकर सेठ से कहो कि बाहर सोलन द्वारा भेजा गया एक आदमी आया है। आपसे मिलना चाहता है।" द्वारपाल ने सेठ से कहा तो उन्होंने कहा-"आने दो उसे ।" उसने जाते ही कहा-“मुझे आपका धनमाल कुछ भी नहीं चाहिए, सिर्फ आपका एक कोट चाहिए।" सेठ विस्मयपूर्वक बोला-"कोट तो भले ही एक के बदले दो-चार ले जाओ, पर यह तो बताओ कि मेरे कोट से तुम्हें क्या प्रयोजन है ?'' वह बोला- “मुझे सोलन ने बताया कि तुम किसी सुखी का कोट ले आओ, फिर मैं तुम्हें सुख का मंत्र दूंगा। मुझे आप जैसा सुखी मनुष्य एथेंस में कोई नहीं दीखता, इसलिए आपके यहाँ आया हूँ।" सेठ ने कहा- "भाई ! तुम मुझे सुखी मानते हो, पर मैं सुखी नहीं हूँ।"
__आगन्तुक बोला-'आपको कोट न देना हो तो इन्कार कर दें। पर झूठ बोलकर टालमटल न करें। आपके पास इतना धन-वैभव, सुख-साधन, नौकर-चाकर आदि हैं फिर भी आप अपने आपको दुःखी बताते हैं, यही आश्चर्य है।"
सेठ ने कहा- 'मैं सच कहता हूँ। मेरा कोट पहनने से तुम सुखी न बने तो तुम्हें अविश्वास होगा। अगर तुम्हें मेरी बात पर विश्वास न हो तो ३-४ दिन मेरे यहाँ रहकर परीक्षा कर लो।" आगन्तुक रहने के लिए राजी हो गया। उसके भोजन आवास आदि की सब व्यवस्था सेठ ने कर दी । दूसरे दिन जब वह नित्यकृत्य से निवृत्त
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org