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________________ २८ आनन्द प्रवचन : भाग ६ कृषकबन्धुओं के घर पर पहुँचा । दोनों ग्राहकों की चरपाई के पास पहुँचकर उन्हें जगाया। जागने पर उक्त दोनों चकित हुए और जगाने का कारण पूछा तो उसने संकेत से चुपचाप अपने पीछे आने को कहा। किसी ईश्वरीय प्रेरणावश वे दोनों ग्राहक चुपचाप उस सज्जन के पीछे चल दिये । उन्हें एक कमरे में सुला दिया। अचानक कुछ ही देर बाद उन कृषकबन्धुओं के दोनों लड़के जो शहर में नाटक देखने गये थे, लौटकर आये और दो चारपाइयों पर दो बिछौने लगे देखकर उन पर सो गये। तदुपरान्त दोनों कृषकबन्धु लाश गाड़ने के लिए गड्ढा तैयार करके आये और अपनी पत्नियों को उक्त दोनों को काटने का संकेत किया, वे भी कटार लेकर उन दोनों ग्राहकों के बदले अपने ही पुत्रों पर टूट पड़ी। फिर दोनों की लाशों को दोनों कृषकबन्धु उस गड्डे में गाड़ने के लिए ले गये। इधर दोनों की पत्नियों ने उनकी जेबें आदि टटोली तो उन्हें दो चार आने के सिवाय कहीं भी अर्थराशि न मिली। इससे उन्हें निराशा हुई। शव गाड़ने के बाद दोनों घबराए-से घर आये और पता चला कि कुछ भी धन न मिला तो उन्हें पश्चात्ताप हुआ। इधर प्रातःकाल जब दोनों बन्धुओं ने उन ग्राहकों को नित्य-कृत्य करते देखा तो सन्न रह गये। अपने पुत्रों के न लौटने के कारण धक्का भी लगा । अतः शंकाग्रस्त होकर दोनों ने गड्ढा खोदकर लाशें निकाली तो अपने मासूम पुत्रों के मृत शरीर खून से लथपथ सामने पड़े थे। फिर क्या था, इस पापमयी घटना की खबर बिजली की तरह सारे इलाके में फैल गई। उन अतिलोभी पापबुद्धि दोनों भाइयों की जो दुर्दशा हुई वह वर्णनातीत है। सचमुच लोभ ने उनका सर्वनाश कर दिया। इसीलिए भोजप्रबन्ध में कहा है-- लोभः प्रतिष्ठा पापस्य, प्रसूतिर्लोभ एव च । द्वष-क्रोधादिजनको लोभः पापस्य कारणम् ॥ लोभ पाप की आधारशिला है । लोभ ही पाप की माता है, वही राग, द्वेष, क्रोध आदि का जनक है, लोभ ही पाप का मूल कारण है। आप समझ गये होंगे कि लोभ में अन्धे होकर दूसरों की हत्या करने का विचार अपने ही पुत्रों की हत्या में परिणत हुआ। इस प्रकार लोभ का दण्ड उन्हें पुत्र वियोग, धन का नाश, भयंकर राजकीय दण्ड एवं अप्रतिष्ठा के रूप में मिला। लोभ ही द्रोह का कारण बनता है ___ लोभ से प्रेरित होकर मनुष्य अपने पिता, भाई, माता, पुत्र, पत्नी एवं विश्वस्त व्यक्ति के साथ भी द्रोह कर बैठता है, लोभवश वह उन्हें धोखा देते देर नहीं लगाता । वह दाँव लगते ही उनकी जमीन, जायदाद, सम्पत्ति, मकान, गहने आदि सब अपने कब्जे में कर लेता है, संस्था की सम्पत्ति को हजम कर लेता है. गबन और घोटाला कर देता है । लोभ के आते ही सारे शास्त्र, धर्म, देव, गुरु, माता-पिता सबको ताक Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004012
Book TitleAnand Pravachan Part 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Shreechand Surana
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1980
Total Pages434
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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