SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 435
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ परमश्रद्धेय आचार्य श्री आनन्द ऋषि जी म० से आज कौन अपरिचित है ! उनके अत्युज्ज्वल सरल, सरस और गम्भीर व्यक्तित्व की गरिमा आज बाल-स्त्री-युवक-वृद्ध-विद्वान मूर्ख सभी के मन को प्रभावित कर रही है। 'आनन्दो ब्रह्म इति व्यजानात्'-आनन्द ब्रह्म है, यह उद्घोष करने वाले भारतीय ऋषि की वाणी आज 'आनन्द ऋषि' के दर्शनों के साथ साकार हो जाती है। आनन्द ऋषि आनन्द केन्द्र है, आध्यात्मिक, अतिमानवीय आनन्द की उपलब्धि के एक सबल स्रोत है। उनके जीवन के कण-कण में आनन्द, उनके वचन-प्रवचन में आनन्द। आत्मानन्द का मार्ग बताने वाले आनन्द ऋषि का जीवन सबके लिए आनन्दमय है। वे ज्ञान के सजग आराधक, साधना के सहज साधक, श्रमण संघ के चरित्रनिष्ठ श्रमणों के सबल सम्बल और अध्यात्म-प्रेमी जन-जन के जीवन पथ प्रदर्शक है। -देवेन्द्रमुनि शास्त्री Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004012
Book TitleAnand Pravachan Part 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Shreechand Surana
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1980
Total Pages434
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy