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कुशिष्यों को बहुत कहना भी विलाप
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लगभग दो सौ वर्ष पहले की बात है। महाराष्ट्र के एक गाँव के किनारे नदी बहती थी, जिसमें एक द्वीप था, जिसके दोनों ओर नदी की धारा बहती थी। उस छोटे-से द्वीप में कुटिया बनाकर 'संतोजी पवार' नामक एक संत रहते थे। प्राकृतिक सौन्दर्यसम्पन्न होने से यह स्थान ध्यान-धारणादि के लिए उपयुक्त था। संतोजी यहीं अपनी साधना करते थे।
___उस गाँव में एक गुस्सेबाज ब्राह्मण रहता था, जो बात-बात में क्रोध से उत्तेजित हो उठता था। वह अपनी पत्नी को बहुत सताता और छोटी-छोटी बात पर क्रुद्ध होकर उसे मारपीट तक देता था। यदि वह कुछ बोलती तो धमकाता"तुमने सामने जवाब दिया तो मैं संतोजी पवार की तरह घरबार छोड़कर साधु बन जाऊँगा ।" बेचारी चुपचाप अत्याचार सहती थी। उसे यह डर था कि “कहीं यह घरबार छोड़कर चले गये तो मैं निराधार हो जाऊँगी।" दैवयोग से एक दिन संतोजी महाराज उसके यहाँ भिक्षार्थ आए। उसने रोते-रोते अपना दुखड़ा सुनाया और पूछा कि वह क्या करे ?
__ संतोजी महाराज ने कहा-इस बार जब तुम्हारा पति यह कहे कि मैं साधु बनता हूँ, तो तुम कह देना-'बहुत अच्छी बात है, कल्याण ही होगा, साधु बनने से तो।' लेकिन फिर वह लौटकर आए तब घर में लेने से पूर्व उससे यह शर्त करवा लेना कि भविष्य में वह कभी ऐसी धमकी न दे। उससे कैसे बात की जाए ? आदि बातें भी उन्होंने ठीक से समझा दीं।
एक दिन उसका पति हमेशा की तरह गुस्सा हुआ, तब वह बहन शान्ति के साथ बोली-'इतनी छोटी सी बात पर गुस्से क्यों होते हैं ?"
इस पर वह क्रोध में आगबबूला होकर बोला- "तुम मुझे वापस जवाब देती हो ? इसीलिए तो शास्त्रों में नारी को 'नरक की खान' कहा है तथा संसार के विविध ताप में जलाने वाली भयंकर अग्नि भी ! बस, मैं ऐसे नरक में रहना नहीं चाहता। मैं संतोजी पवार के पास चला जाऊँगा और आत्मकल्याण करूंगा।"
पत्नी बोली-“यह तो बहुत अच्छी बात है । आपको सच्चा वैराग्य हो गया हो तो इससे हमारे कुल का उद्धार ही होगा। आप संतोजी महाराज के पास जाइए। वे तो महान् संत हैं । उनकी संगति से हम सबका कल्याण होगा।"
यह सुनकर तो ब्राह्मण एकदम उत्तेजित हो गया । संन्यासी बनने के लिए जनेऊ तोड़ना आवश्यक होता है, इसलिए वह अपना जनेऊ तोड़कर सीधा संतोजी के पास पहुँचा।
संतोजी अपनी कुटिया में बैठे हुए थे। इसे आये देखकर पूछा- 'कहो भाई कैसे आए ?" वह बोला-"महाराज ! मुझे संसार से वैराग्य हो गया है। अतः अब घरबार छोड़कर आपकी सेवा में संत बनना चाहता हूँ।"
संतोजी ने पूछा-"भाई ! तुम्हें वैराग्य क्यों हुआ?' वह बोला-"महाराज! संसार में क्या धरा है ? स्त्री तो 'नरक की खान' है। स्त्रियों के संग से कभी किसी
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