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आनन्द प्रवचन : भाग ६
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त्कारी है ।" अतः स्वामीजी ने उससे कहा- - " अगर तुम मुझे अपना चमत्कार दिखाओ तो मैं तुम्हारे बच्चे के सिर पर हाथ रख सकता हूँ ।" उसने यह शर्त सहर्ष स्वीकार की ।
स्वामीजी ने चित्त को बिलकुल एकाग्र करके प्रबल संकल्प के साथ उस बच्चे के सिर पर हाथ रखा कि थोड़ी ही देर में बच्चा ठीक होगया । अब जादूगर का नम्बर आया । उसके कहने पर स्वामीजी ने उससे ताजे गुलाब के फूल, सेव और कुछ वस्तुएँ माँगीं । स्वामी एवं अन्य लोग यह देखकर चकित होगए कि थोड़ी ही देर में उसने अपनी कंबल से एक-एक करके सब चीजें निकाल कर दे दीं। वह व्यक्ति संस्कृत नहीं जानता था । स्वामीजी ने संस्कृत का एक श्लोक अपने मन में सोच लिया । जब उससे पूछा गया कि स्वामीजी ने अपने मन में क्या सोचा है ? तो उसने तपाक से कहा - " अपनी जेब में पड़ा कागज निकालिए । "
संकल्प का चमत्कार
स्वामीजी ने जेब से वह कागज निकालकर देखा तो वही श्लोक उसमें अंकित था, जो स्वामीजी ने मन में सोचा था । सभी आश्चर्यचकित लोगों को स्वामी ने बताया कि यह सब चित्त की एकाग्रता से किये जाने वाले प्रबल है । चित्त की एकाग्रता से बड़े-बड़े कार्य सिद्ध हो जाते हैं । एकाग्रचित्त से होने वाला संकल्पः सर्वोपरि शक्ति विक्षिप्तचित्त से कोई संकल्प नहीं हो सकता, क्योंकि डांवाडोल होता है; उसमें कोई भी शुभ विचार अधिक देर संकल्प में तो विचार बीज का अधिक देर तक टिकना आवश्यक है । कोई भी बीज बोने पर जब अधिक समय तक टिकता है, तभी वह जमता है, और उसमें से अंकुर फूटते हैं, इसी प्रकार चित्त की भूमि में विचारों के बीज अधिक देर तक टिकेंगे, तभी वे संकल्प का रूप लेंगे ।
बिखरा हुआ चित्त तो टिक नहीं पाता, और
विक्षिप्तचित्त भूमि में विचारों के बीज को काम-क्रोधादि दुर्विकल्पों की आँधियाँ उड़ा ले जाती हैं, वे जरा-सी देर टिक पाते हैं, तब उनमें से सकल्प का अंकुर कैसे प्रस्फुटित होगा ? और संकल्प ही सिद्धि के लिए सर्वोपरि शक्ति है, जो कि एकाग्र चित्त-भूमि में ही पैदा हो सकता है ।
वैज्ञानिकों ने जितने भी नव-नवीन आविष्कार किये हैं, सामाजिकों ने जितने भी सुधार या परिवर्तन किये हैं, या जितने भी मानव-कल्याण के उत्तम कार्य होते हैं, विद्याएँ, कलाएँ, शिल्प, या अन्य ज्ञान प्राप्त किये जाते हैं, वे सब एकाग्र चित्तभूमि में होने वाले संकल्प के ही शुभ परिणाम हैं ।
एकाग्रचित्त समुत्पन्न संकल्प ही सर्वोपरि शक्ति है, इसे समझने के लिए तथागत बुद्ध से हुए एक संवाद का उल्लेख करना यहाँ उपयुक्त होगा -
पत्थर की एक चट्टान को देखकर तथागत बुद्ध से उनके एक शिष्य ने पूछा
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