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आनन्द प्रवचन : भाग ६
एक दफा भी पीछे की ओर देख लिया तो तेरा चित्त विक्षिप्त समझा जाएगा, और विक्षिप्तचित्त वाले लड़के का फिर हमारे घर में कोई स्थान नहीं रहेगा । यह इसलिए कि विक्षिप्तचित्त का होने से तू न तो विद्याध्ययन ठीक से कर सकेगा और न ही किसी व्यावहारिक कार्य में सफल होगा ! हाँ, तो तुझे सुबह नौकर विदा दे देंगे। पर याद रखना, घोड़े पर चढ़कर भूलकर भी पीछे की ओर मत देखना । अन्यथा, इस घर से तेरा सम्बन्ध समाप्त हो जाएगा।"
"हाँ, तो मैं पाँच वर्ष का था, उस समय चित्त ऐसी कठोर साधना की अपेक्षा की गई। सुबह ४ बजे मुझे उठा दिया गया और नौकरों ने विदा कर दिया। चलते वक्त नौकरों ने भी कहा—'बेटे, पीछे मुड़कर न देखना, होशियारी से जाना । इस घर के सब बच्चे विद्यापीठ के लिए इसी तरह विदा हुए हैं, जिन्होंने पीछे लौटकर नहीं देखा। तुम जहाँ भेजे जा रहे हो, वह विद्यापीठ साधारण नहीं है, देश के श्रेष्ठतम महापुरुषों का जीवन निर्माण वहाँ से हुआ है । पर वहाँ प्रवेश के समय तुम्हारे चित्त की एकाग्रता की कठोर परीक्षा होगी। भरसक कोशिश करके इस प्रवेश-परीक्षा में सफल होना, क्योंकि वहाँ की परीक्षा में अनुत्तीर्ण होगए तो फिर इस घर में तुम्हारे लिए कोई स्थान न रहेगा।'
“पाँच वर्ष का बच्चा ही तो था, आँखों में आँसू भर आए, लेकिन न तो मैं जोर से रोया, न पीछे मुड़कर देखा, क्योंकि यह डर था कि पिताजी ने पीछे मुड़कर देखते देख लिया तो फिर मैं हमेशा के लिए इस घर का न रहूँगा।"
आगे वह लिखता है- "मैं विद्यापीठ में पहुँच गया। विद्यापीठ के प्राचार्य ने कहा-'वत्स ! यहाँ विद्यापीठ की प्रवेश-परीक्षा बड़ी कठोर है, शायद तुम्हें अपने पिताजी ने बताया होगा।' और उन्होंने मेरे चित्त की एकाग्रता की कठोर परीक्षा लेने हेतु मुझे कहा-'देखो, इस द्वार पर आँखें बंद करके बैठ जाओ। जब तक मैं यहाँ वापस न आऊँ तब तक आँखें मत खोलना, चाहे कुछ भी हो जाय । यह तुम्हारी प्रवेश-परीक्षा है। अगर तुमने एक बार भी आँख खोल ली तो हम तुम्हें यहां से वापस लौटा देंगे । जिस छात्र में अपने चित्त पर इतना भी काबू नहीं है, वह विद्यापीठ के पाठ्यक्रम में कैसे चित्त लगा सकेगा और क्या सीख सकेगा? आंखें बन्द करने जितना भी चित्त पर नियंत्रण नहीं है, उसके अध्ययन करने या सीखने का दरवाजा बंद होगया। फिर तुम इस (अध्ययन के) काम के नहीं रहोगे, और काम करना' ।"
लामा ने आगे लिखा है-"मैं आँखें मूंदकर दरवाजे पर बैठ गया । मुझे मक्खियाँ सताने लगीं, पर आँखें खोलकर देखना नहीं है । आँखें खोली तो सारा मामला समाप्त ! फिर विद्यापीठ में पढ़ने आए हुए बच्चों में से कुछ मेरे पास से अड़कर जाने लगे, कुछ मुझे धक्का देने लगे, कुछ बच्चे मेरे पर कंकर फेंकने लगे, तो कोई और तरह से परेशान करने लगे, परन्तु आँख खोलकर देखा तो सब मामला
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