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________________ बुद्धि तजती कुपित मनुज को ३१३ सच्चाई को समझ नहीं पाता, उचित निर्णय नहीं कर पाता । फलतः वह बिना विचारे सर्वस्व स्वाहा करने को तत्पर हो जाता है, उसके सारे ही कार्य अविवेक और अदूरदर्शिता से होते हैं। ___तनिक-सी बात पर गुस्से से उत्तेजित हो जाना, मानसिक सन्तुलन खो देना, आवेश में भर जाना, मन-मस्तिष्क का बुखार नहीं है तो क्या है ? इस मस्तिष्कीय ज्वर में मनुष्य उन्मत्त-सा हो जाता है, न बोलने योग्य वाणी बोलता है। उसकी वाणी में कटुता, व्यंग्य, तिरस्कार, अशिष्टता, अभद्रता आदि न जाने कितने ही विष घुले रहते हैं । जिस प्रकार शारीरिक ज्वर आने पर शरीर का सारा कार्यक्रम लड़खड़ा जाता है, उसी प्रकार दिमागी बुखार आने पर क्रोधावेश में मनुष्य की विचार एवं निर्णय की शक्तियाँ अस्तव्यस्त हो जाती हैं । उस स्थिति में कोई भी सही निर्णय नहीं ले सकता । वस्तुतः उद्वेग मनुष्य की बुद्धि को अनिश्चय के दलदल में फंसा देता है। इस मस्तिष्कजनित उन्माद-आवेश के कारण मनुष्य प्रायः न करने योग्य कार्य कर बैठता है, जिसके लिए बाद में उसे जिन्दगी भर तक पश्चात्ताप करना पड़ता है ? ___ एक प्राचीन उदाहरण लीजिए-एक राजा एक बार घोडे पर चढ़कर सैर करने के लिए निकला। घोड़ा उलटी लगाम का था, इसलिए ज्यों-ज्यों वह उसे रोकने के लिए लगाम खींचता, त्यों-त्यों घोड़ा अधिकाधिक तेजी से दौड़ता था। किसी भी तरह वह रुका नहीं । राजा को वह एक भयंकर जंगल में ले पहुँचा। राजा थक गया। उसने घोड़े की लगाम छोड़ दी, तब घोड़ा खड़ा रहा। भूखा-प्यासा राजा एक विशाल छायादार वृक्ष के नीचे बैठा। वह विश्राम कर रहा था, उसी समय उसकी दृष्टि वृक्ष के खोखले से गिरते हुए पानी पर पड़ी। उसने पत्तों का एक दोना बना कर उस खोखले के नीचे रख दिया। थोड़ी ही देर में जब राजा उस दोने को लेकर पानी पीने को तैयार हुआ कि उस वृक्ष पर बैठे हुए एक पक्षी ने झपट्टा मारकर राजा के हाथ में रखा पानी का दोना नीचे गिरा दिया। उस उपकारी पक्षी ने राजा के हाथ से पानी का दोना इसलिए गिरा दिया था कि वह पानी नहीं था, किन्तु उस वृक्ष के कोटर में बैठे हुए एक अजगर के मुह से गिरता हुआ विष था। उसने सोचा कि अगर अनेक लोगों का आधार राजा इसे पी लेगा तो तुरंत मरणशरण हो जाएगा। परन्तु राजा इस बात को नहीं जान सका । उसने दूसरी बार उस दोने को कोटर के नीचे लगाया और ज्यों ही दोने का पानी पीने लगा, उस पक्षी ने फिर झपट्टा मारकर गिरा दिया, तब राजा तीसरी बार भी दोना भरकर पीने को तैयार हुआ कि इस बार भी पक्षी ने उसे गिरा दिया। इस पर राजा उस पक्षी पर क्रोध से अत्यन्त आगबबूला होगया और उसे जल पीने में विघ्नकर्ता एवं अकारण दुष्ट जानकर तलवार से मार डाला। कुछ ही देर बाद राजा की सेना वहाँ भोजन एवं जल लेकर आ पहुँची। राजा ने भोजन किया और पानी पीकर स्वस्थ हुआ। फिर अकस्मात् राजा की दृष्टि उस Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004012
Book TitleAnand Pravachan Part 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Shreechand Surana
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1980
Total Pages434
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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