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________________ आनन्द प्रवचन : भाग ६ वे परमसत्य की पूर्णता को ज्ञान - दर्शन - चारित्र, वीर्य और सुख के रूप में पाकर कृतकृत्य एवं देहमुक्त हो चुके हैं। तीसरी साधु की शरण इसलिए ग्रहण की जाती है वे परम सत्यार्थी और सत्य के परमशोधक हैं, उत्कृष्ट साधक भी हैं । और चौथी शरण ली जाती है धर्मं की, वह परमसत्यधर्म की ली जाती है, यानी जो धर्म सत्य से ओतप्रोत है, उसी की शरण ली जाती है । इस प्रकार इन चारों शरणों का सत्य शरण में अन्तर्भाव हो जाता है । इसीलिए महर्षि गौतम ने कहा - 'सरणं तु सचचं ' 'शरण तो सत्य ही है । ' सत्य की शरण ही क्यों ? प्रश्न होता है, सत्य की ही शरण क्यों ली जाए ? सत्य में ऐसी क्या विशेषता है ? ४ सर्वप्रथम तो आपको यह समझ लेना है कि सत्य सांसारिक पदार्थों की तरह नाशवान् या क्षणिक — अनित्य नहीं है, वह शाश्वत है, नित्य है । हजारों वर्ष पहले जो सत्य था, वही आज भी है । दूसरे उसकी बलिष्ठता के कारण उसकी शरणदायकता में किसी को सन्देह नहीं हो सकता । प्रश्नव्याकरणसूत्र में सत्य की महाशक्ति का परिचय दिया गया है । मैं संक्षेप में आपको बताऊँगा - " महासमुद्र में दिग्भ्रान्त बने हुए जहाज सत्य के प्रभाव से स्थिर रहते हैं, डूबते नहीं । जल का उपद्रव होने पर सत्य के प्रभाव से मनुष्य न बहते हैं, न मरते हैं, किन्तु पानी की थाह पा लेते हैं । यह सत्य का ही प्रभाव है कि मनुष्य अग्नि में जलते नहीं । सत्य को अपनाने वाले व्यक्ति पहाड़ से गिराये जाने पर भी मरते नहीं । युद्ध में तलवार हाथों में लिए हुए विरोधियों से घिरकर भी सत्यनिष्ठ महापुरुष अक्षत निकल आते हैं । सत्य के प्रभाव से सत्यधारी घोर वध, बन्ध, अभियोग और शत्रुता से भी मुक्ति पा लेते हैं और शत्रुओं से बचकर निकल आते हैं । देवता भी सत्यवादी की सेवा में रहते हैं ।" सत्य से आकृष्ट होकर भारतीय संस्कृति में एक सूक्ति प्रचलित हैं- " सत्य में हजार हाथियों के बराबर बल होता है ।" शारीरिक दृष्टि से यह बात भले ही तथ्यपूर्ण न लगती हो, मगर आत्मिक दृष्टि से तो पूर्णतः यथार्थ है । जो व्यक्ति सत्य की शरण में चला जाता है, उस सत्यनिष्ठ में इतनी आत्मशक्ति आ जाती है कि वह अकेला हजार मिथ्याचारियों से भिड़ सकता है, और अन्ततः विजयी बनता है । इसलिए ऐसे बलिष्ठ और आपत्काल में रक्षक सत्य की शरणागति में किसको सन्देह हो की शरण स्वीकार करने पर व्यक्ति चाहे कितनी ही आपदाओं से सान्त्वना मिलती है, उसका विश्वास दृढ़ होता है, और उसकी रक्षा भी होती है । सकता है ? सत्य घिरा हो, उसे सत्य ही अपनी शरण में आए हुए व्यक्ति के जीवन में बल और प्रकाश भरता है । सत्य का अवलम्बन लेने पर समाज की शक्ति और क्षमता में चार चाँद लग जाते हैं । असत्य का आश्रय लेने पर व्यक्ति एवं समाज, चाहे वह कितना ही सम्पन्न, Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004012
Book TitleAnand Pravachan Part 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Shreechand Surana
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1980
Total Pages434
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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