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________________ १० अभाव की पूर्ति भी सुख का कारण नहीं ४०, असंतोषी स्वभाव : अभावों से पीड़ित ४१, असीम इच्छाएँ पूरी नहीं होतीं ४१, असंतुष्ट : सदा दुःखी ४४, असन्तुष्ट व्यक्ति का मानस ४५, वर्तमान परिस्थितियों से असन्तुष्ट : भूत-भविष्य की चिन्ता ४७, सन्तुष्ट और असन्तुष्ट में अन्तर ४८, सन्तोषी जीवन : हर हाल में खुश ४९, सन्तोषी जीवन : विवेकपूर्ण दृष्टिकोण से ५१, आध्यात्मिक जीवन का मुख्य द्वार : सन्तोष ५४, सन्तोष : समस्त सद्गुणों का मूलाधार ५५ । २४. सौम्य और विनीत की बुद्धि स्थिर - १ अन्य प्राणियों और मानव की बुद्धि में अन्तर ५७, मानवीय बुद्धि का विकास ५६, वर्तमान मानव बुद्धि: तारक या मारक ? ६०, तारकबुद्धि का पलायन : मारक बुद्धि का आगमन ६१, तीन प्रकार की बुद्धि ६३, तामसी बुद्धि : सबसे निकृष्ट ६३, राजसी बुद्धि : चंचल एवं अहितकर ६४, सात्त्विक बुद्धि : स्थिर और प्रकाशक ६४, बुद्धि से यहाँ सात्त्विक और स्थिर बुद्धि ही ग्राह्य ६६, सात्त्विक बुद्धि की विशेषता ६६, बुद्धि : ज्ञान का सही उपयोग करना ६७, बेगम के भाई की बुद्धि परीक्षा ६८ । २५. सौम्य और विनीत की बुद्धि स्थिर सूक्ष्म और स्थूल बुद्धि ७२, स्थिरबुद्धि का महत्त्व क्यों ? ७३, बुद्धि किसकी स्थिर, किसकी नहीं ? ७५, धन और पद होने से स्थिर बुद्धि नहीं आती ७६, बुद्धि ही बड़ी है, धन-सम्पत्ति नहीं ७६, संगति से भी बुद्धि सात्त्विक व स्थिर नहीं ७७, मनुष्य पर संकट आ पड़ने से भी बुद्धि परिपक्व नहीं ७८, केवल नम्रता से भी बुद्धि स्थिर नहीं ७८. क्रोधादि आवेश और अभिमान के समय बुद्धि स्थिर नहीं ७६, मालवीय जी की स्थिरबुद्धि से समस्या हल हुई ८०, विनीत को स्थिरबुद्धि प्राप्त होती है, अविनीत को नहीं ८२, स्थितप्रज्ञलक्षण : गीता में ८५, स्थिरबुद्धि प्राप्त होने की प्रार्थना ८७ । २६. ऋद्ध कुशील पाता है अकति .२ Jain Education International - अकीर्ति क्या, कीर्ति क्या ? ८८, कीर्ति के लक्षण ८६, सत्कार्यों से कीर्ति स्वतः प्राप्त होती है ६२, कीर्ति के भूखे लोग क्या करते हैं ४, कीर्ति चाहते हैं तो कीर्ति - पात्र बनें ६७, महापुरुषों के नाम पर कीर्ति पाने की कला ६६, कीर्ति की आकांक्षा : साधना में बाधक &&, कीर्ति को आँच न लगे, ऐसे कार्य करें १००, जीवन वाटिका की For Personal & Private Use Only ५७-७१ ७२-८७ ८८-१०६ www.jainelibrary.org
SR No.004012
Book TitleAnand Pravachan Part 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Shreechand Surana
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1980
Total Pages434
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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