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क्रुद्ध कुशील पाता है अकीर्ति ६३ इनकी माताएँ शिकायत करेंगी और दूकान की बदनामी होगी। बच्चों को सौदा देते समय बच्चा कहे या न कहे, अपने आप ही वे थोड़ी-सी और डाल देते थे। बड़ों को वे चीज पूरी तौलकर देते थे। यही कारण था कि बड़े लोग उनकी दूकान पर सौदा खरीदने नहीं आते थे । बच्चों को ही भेजने में वे नफे में रहते थे।
दूसरी बात यह थी कि उनकी दुकान पर इतने छोटे बच्चे आते थे, जो यह भी बोलना नहीं जानते थे कि उन्हें क्या लेना है ? कितने पैसे उनके पास हैं ? कितने पैसे की कौन-सी चीज लेनी है ? ऐसे छोटे बच्चे एक कपड़ा लाते थे, जिसके कोने में एक चिट और दाम बँधे रहते थे। उस गाँठ को खोलते, पढ़ते उसके अनुसार सामान बाँधते, बाकी बचे पैसे उस कपड़े के पल्ले में बाँधते और बालक को जिस तरह ऊपर दूकान में चढ़ाया था, उसी तरह दूकान से नीचे उतारते थे। एक विशेषता और थी, बाबा ईश्वरदास में। उनकी दुकान में प्रतिदिन डेढ़-दो सेर चूर्ण का भी खर्च था। प्रत्येक बच्चा सौदा लेने के बाद चूर्ण की एक पुड़िया लिए बिना दूकान छोड़कर जाता ही न था। इसके लिए वे एक हंडिया में पाचक स्वादिष्ट चूर्ण भरा हुआ रखते थे। बालक माँगे या न माँगे वे स्वयं याद करके उसे चूर्ण की पुड़िया दे देते थे।
शहर में कोई भी उनका विरोधी न था । वे किसी से किसी भी बात पर तकरार नहीं करते थे। सबकी भलाई और ईमानदारी में उनका विश्वास था। इसी कारण सब लोग उनके व्यवहार और शालीनतापूर्ण आचरण की प्रशंसा करते थे। उनके जीवन की गौरवगाथा प्रत्येक बच्चे के हृदय पर अंकित थी। जब उनकी मृत्यु हुई तो उनकी अर्थी के पीछे इतनी भीड़ थी कि अगर अतरोली शहर का कोई राजा होता तो भी उसके पीछे इतनी भीड़ न होती। इसका कारण था, ईश्वरदासजी की नेकी के काम आबालवृद्ध सभी के हृदय में समाए थे। इसलिए सभी उनकी कीर्तिगाथा गाते थकते न थे।
श्री ईश्वरदास जी को अपनी कीर्ति के लिए कहीं ढिंढोरा नहीं पीटना पड़ा, उनकी कीर्ति स्वतः ही फैलती गई। तात्पर्य यह है कि जो व्यक्ति इस दुनिया में आकर सत्कर्म, परोपकार, निःस्वार्थ दान-पुण्य, सेवा, भक्ति एवं सदाचार-पालन कर जाते हैं, उनके वे नेकी के कार्य स्वयमेव कीर्ति के रूप में कीर्तन करते रहते हैं। पंजाब के प्रसिद्ध भजनीक श्री नत्थासिंह ने इसी बात का समर्थन किया है
जीव है मुसाफिर और जग है सराए। कभी कोई आए यहाँ कभी कोई जाए रे ॥ध्र व।। उन्हीं के ही नाम आज, दुनिया में छाए हैं । नेकी के महल जिन लोगों ने बनाए हैं। नत्थासिह उन्हीं के जहान गुण गाए रे ॥जीव है....
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