________________
८४
आनन्द प्रवचन : भाग ८
धर्म-संतुलित अर्थ-काम न होने पर हानि
अर्थ और काम दोनों का सन्तुलन रखने वाला धर्म है। अर्थ कहीं धर्ममर्यादा से आगे न बढ़ जाय, इसी प्रकार काम भी धर्म के नियंत्रण से बाहर न हो जाए, इसलिए इन दोनों पर धर्म की लगाम रखनी आवश्यक है। आज हम देखते हैं कि शिक्षा चिकित्सा, वकालात, व्यापार, विज्ञान आदि सभी क्षेत्रों में धर्म अंकुश समाप्त होता जा रहा है। इन क्षेत्रों के निरंकुश हो जाने का परिणाम यह आया कि शिक्षा के क्षेत्र में विद्यार्थी अनुशासनहीन, अविनीत, स्वच्छन्दी और असंयमी बन रहे हैं, अध्यापक भी चरित्रहीन और गैर जिम्मेदार बन गये हैं। पैसे के लोभ में आकर वे चाहें जिस विद्यार्थी को उत्तीर्ण कर या करा देते है । शिक्षण जब धर्म के अंकुश में था, तब तक वहां विद्यार्थियों में विनय, अनुशासन, चरित्रनिर्माण की रुचि और संयम था अध्यापकों में विद्यार्थियों के जीवननिर्माण के प्रति लगन थी, चरित्रशीलता थी, अध्ययन के साथ-साथ वे जीवन शिक्षण भी देते थे।
वकालात के क्षेत्र में धर्म-विमुखता के कारण झूठ-फरेब, तिकड़मबाजी, झूठे मुकद्दमे लेकर जिताना, जैसे-तैसे धन बटोरना ही प्रायः वकीलों का लक्ष्य रह
गया।
यही बात चिकित्सा के क्षेत्र में धर्म-विहीनता के कारण आई। डाक्टर रोगी के प्रति लापरवाह हो गये, रोग मिटाना या रोगोत्पत्ति का कारण बताना उनका लक्ष्य न होकर रोग बढ़ाना और दवा इन्जेक्शन देकर अधिकाधिक पैसे कमाना ही प्रायः उनका लक्ष्य बन गया है।
धर्म की उपेक्षा करके अर्थ-काम की उपासना करने वाले व्यापारी का भी यही लक्ष्य बन गया है । ग्राहक को कैसे ठगना, कैसे अधिक मुनाफा कमाना, किस प्रकार माल में मिलावट करके तौलनाप में गड़बड़ करके पैसे अधिक कमाना इत्यादि लक्ष्य व्यापारी जगत् का बन गया है। बन्धुओ! आप लोगों में से अधिकांश व्यापारी हैं। प्राचीन काल के व्यापारी श्रावक कैसे होते थे? इसका आदर्श-चित्र शास्त्रों में मिलता है
धम्मिया धम्मेण चेव वित्तिं कप्पेमाणा विहरई' . वे धार्मिक थे, धर्म दृष्टि से ही आजीविका करते हुए जीवन यात्रा चलाते थे।"
आप लोग इस पर विचार करिये। धर्म के नियंत्रण में अगर आप अर्थोपार्जन करते हैं तो उससे आपको दोहरा लाभ है-व्यापार द्वारा समाज की सेवा हो जाती है और आपका जीवन भी धर्ममर्यादा में रहकर मोक्षपथ पर अग्रसर होता है। इससे व्यापारी का जीवन स्वस्थ और शान्त रहता है। और विज्ञान के क्षेत्र में भी धर्म का कोई अंकुश नहीं रह गया है। यही कारण है कि निरंकुश विज्ञान संहारक अस्त्र-शस्त्र बनाकर मानव जीवन के लिए अभिशाप बन गया है । हीरोशिमा और
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org