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________________ धर्म-नियन्त्रित अर्थ और काम ८१ काम का सेवन करने की छूट रखी थी। आनन्द, कामदेव आदि गृहस्थ जब श्रमण भगवान् महावीरस्वामी का धर्मोपदेश सुनने आये, तब भगवान् महावीर ने उनके समक्ष साधु-मार्ग और गृहस्थ-मार्ग दोनों ही धर्म प्रस्तुत किये। उन्होंने सम्पूर्ण ब्रह्मचर्य एवं सीमित ब्रह्मचर्य तथा सम्पूर्ण अपरिग्रह एवं सीमित अपरिग्रह (परिग्रह-परिमाण) दोनों ही कोटि के व्रतों का विधान किया। उन्होंने किसी भी व्यक्ति से यह आग्रह नहीं किया कि वह पूर्णरूप से ब्रह्मचर्य को स्वीकार करे या मर्यादित ब्रह्मचर्य (स्वदार-सन्तोष) को स्वीकार करे, तथा परिग्रह का सर्वथा त्याग करे या सीमित त्याग करे। यह उसकी रुचि, योग्यता, शक्ति, परिस्थिति और क्षमता पर उन्होंने छोड़ दिया था। यदि भगवान् महावीर ने आगन्तुक श्रोताओं से पूर्ण ब्रह्मचर्य एवं पूर्ण अपरिग्रह महाव्रत का ही आग्रह किया होता और स्वदार-सन्तोष एवं परिग्रह-परिमाणव्रत का कोई निर्देश न किया होता, तब तो यह माना जा सकता था कि जैनधर्म में अर्थ और काम को कोई स्थान नहीं है। किन्तु ऐसा है नहीं। इसका मतलब है कि यहाँ अर्थ और काम-पुरुषार्थ का गृहस्थ जीवन में स्वीकार तो किया गया है, परन्तु किया गया है, वह धर्म के नियंत्रण में ही। धर्म मुख्य और अर्थ-काम गौण अर्थ और काम को अध्यात्ममनीषियों ने मुख्य स्थान नहीं दिया है, न अर्थ काम को नेतृत्व ही सौंपा है। इसका अर्थ है, मानव जीवन में अर्थ और काम गौण हैं, धर्म मुख्य है। धर्म के नेतृत्व या अंकुश में ही अर्थ और काम रहें, यही भारतीय धर्मों और दर्शनों ने उचित माना है। इसीलिए कहा है 'तत्राऽपि धर्म प्रवरं वदन्ति' धर्म, अर्थ और काम तीनों में धर्म को श्रेष्ठ कहते हैं। इसीकारण धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष, इन चारों में धर्म पुरुषार्थ को सबसे आगे रखा गया है और अन्त में मोक्ष को। जिसप्रकार रेलगाड़ी में सबसे आगे एंजिन होता है, ड्राइवर (चालक) उसी में रहता है और अन्त में रहता है-गार्ड । बीच में यात्रियों के डिब्बे रहते हैं, ताकि चालक उसे ठीक रास्ते से ले चलता रहे और गार्ड उसकी देखभाल करता रहे; इसी प्रकार यह पुरुषार्थी जीवन की रेलगाड़ी है, इसके द्वारा गन्तव्यस्थानमोक्ष पहुँचना है। इसके आगे धर्म चालक है, जो सबसे आगे हैं, वही उसे सही दिशा में उचित मार्ग पर ले चलता है। बीच में अर्थ-कामरूपी जीवन यात्रियों के डिब्बे हैं, वे इधर-उधर भटक न जायें, पथभ्रष्ट न हो जायें, इसीलिए डिब्बों का नियंत्रण धर्मरूपी चालक के हाथ में है, और अन्त में मोक्षपुरुषार्थी गार्ड, जो कहीं भूल या गड़बड़ होती हो, जीवन यात्रा विपरीत दिशा में हो रही हो या मार्ग में कहीं खतरा हो तो मार्गदर्शन देता रहता है। संक्षेप में धर्म के नेतृत्व में अर्थ और काम को रखने का यही उद्देश्य है। For Personal & Private Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.004011
Book TitleAnand Pravachan Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Kamla Jain
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1979
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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