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________________ रस की सहज अभिव्यक्ति होती है उसके लिए आपश्री को प्रयास करने की आवश्यकता नहीं होती यही कारण है कि लोग आपश्री को वाणी का जादूगर मानते हैं। आपश्री की वाणी में मक्खन की तरह मृदुता है, शहद की तरह मधुरता है, और मेघ की तरह गम्भीरता है। भावों की गंगा को धारण करने में भाषा का भागीरथ पूर्ण समर्थ है । आपश्री की वाणी में ओज है, तेज है और सामर्थ्य है। आपश्री के प्रवचनों में जहाँ एक ओर महान आचार्य कुन्दकुन्द, समन्तभद्र की तरह गहन आध्यात्मिक विवेचना है । आत्मा, परमात्मा की विशद चर्चा है तो दूसरी ओर आचार्य सिद्धमेन दिवाकर और अकलंक की तरह दार्शनिक रहस्यों का तर्कपूर्ण सही-सही समाधान है। स्याद्वाद, अनेकान्तवाद, नय, निक्षेप, सप्तभंगी का गहन किन्तु सुबोध विश्लेषण है। एक ओर आचार्य हरिभद्र, हेमचन्द्र की तरह सर्व विचार समन्वय का उदात्त दृष्टिकोण प्राप्त होता है तो दूसरी ओर आनन्दघन, व कबीर की तरह फक्कड़पन और सहज निश्छलता दिखाई देती है। एक ओर आचार्य मानतुंग की तरह भक्ति की गंगा प्रवाहित हो रही है तो दूसरी ओर ज्ञान वाद की यमुना बह रही है । एक ओर आचार क्रान्ति का सूर्य चमक रहा है तो दूसरी ओर स्नेह की चारुचन्द्रिका छिटक रही है। एक ओर आध्यात्मिक चिन्तन की प्रखरता है तो दूसरी ओर सामाजिक समस्याओं का ज्वलंत समाधान है। संक्षेप में हम कह सकते हैं कि आचार्य प्रवर के प्रवचनों में दार्शनिकता, आध्यात्मिकता और साहित्यिकता सब कुछ है। मेरे सामने आचार्य प्रवर के प्रवचनों का यह बहुत ही सुन्दर संग्रह है । गौतम कुलक पर उनके द्वारा दिये गये मननीय प्रवचन हैं। प्रवचन क्या है ? चिन्तन और अनुभूति का सरस कोष है। विषय को स्पष्ट करने के लिए आगम, उपनिषद, गीता, महाभारत, कुरान, पुराण, तथा आधुनिक कवियों के अनेक उद्धरण दिये गये हैं । वहाँ पर पाश्चात्य चिन्तक फिलिप्स जॉनसन, बेकन, कूले, साउथ, टालस्टाय, ईसामसीह, चेनिंग, बॉबी, पिटरसन, सेनेका, विलियम राल्फ इन्गे, हॉम, सेन्टमेथ्यु, जार्ज इलियट, शेली, पोप, सिसिल, कॉल्टन, शेक्सपियर, प्रभृति शताधिक व्यक्तियों के चिन्तनसूत्र भी उद्धृत किये गये हैं । जिससे यह स्पष्ट परिज्ञात होता है कि आचार्य सम्राट का कितना गम्भीर व व्यापक अध्ययन है। पौराणिक, ऐतिहासिक रूपकों के अतिरिक्त अद्यतन व्यक्तियों के बोलते जीवन-चित्र भी इसमें दिये हैं। जो उनके गम्भीर व गहन विषय को स्फटिक की तरह स्पष्ट करते हैं। यह सत्य है कि जिसकी जितनी गहरी अनुभूति होगी उतनी ही सशक्त अभिव्यक्ति होगी । आचार्य प्रवर की अनुभूति गहरी है तो अभिव्यक्ति भी स्पष्ट है । ___मैंने आचार्य प्रवर के प्रवचनों को पढ़ा है मुझे ऐसा अनुभव हुआ है कि प्रवचनों का सम्पादन भाव, भाषा और शैली सभी दृष्टियों से उत्कृष्ट हुआ है। सम्पादन कला-मर्मज्ञ कलमकलाधर श्रीचन्द जी सुराना 'सरस' ने अपनी सम्पादन कला Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004011
Book TitleAnand Pravachan Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Kamla Jain
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1979
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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