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श्रद्धेय आचार्य सम्राट ने अपने गहनतम अध्ययन-अनुभव के आधार पर इस ग्रन्थ के एक-एक सूत्र पर विविध दृष्टियों से चिन्तन-मनन-प्रत्यालोचन कर जीवन का नवनीत प्रस्तुत किया है। इन प्रवचनों में जहाँ चिन्तन की गहराई है, वहाँ जीवन जीने की सच्ची कला भी है । गौतम कुलक के इन प्रवचनों को हम लगभग तीन-चार भाग में क्रमशः प्रकाशित करेंगे। इनका संपादन यशस्वी साहित्यकार श्रीचन्द जी सुराना ने किया है। विद्वान् लेखक मुनिश्री नेमीचन्द जी महाराज का मार्गदर्शन भी समय-समय पर मिलता रहा है। हम उनके आभारी हैं। आशा है यह प्रवचन पुस्तक पाठकों को पसन्द आयेगी।
मन्त्री श्री रत्न जैन पुस्तकालय, पाथर्डी
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