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________________ ३६४ आनन्द प्रचचन : भाग ८ नहीं आई । एकदिन एक साहूकार को शक हुआ कि उसके खजाने में कहीं खोटे सिक्के तो नहीं आ गये ? यह जांचने के लिए उसने सब सिक्के एक जगह इकट्ठे किये और जाँचपड़ताल शुरू की। अच्छे सिक्के तिजोरी में और खराब सिक्के एक तरफ पटके जाने लगे तो खोटे सिक्के घबराकर परस्पर विचार करने लगे-अब तो बुरे दिन आ गए । यह साहूकार अवश्य ही हमें छाँटकर तुड़वा डालेगा। कोई युक्ति निकालनी चाहिए, जिससे इसकी नजर से बचकर तिजोरी में चले जायें।" ___एक खोटा सिक्का बड़ा चालाक था। उसने कहा- "भाइयो! अगर हम लोग जोर से चमकने लगे तो यह साहकार पहचान नहीं पाएगा और अपना काम बन जाएगा।" बात सबको पसन्द आ गई। सब खोटे सिक्के चमकने लगे और सेठ की तिजोरी में पहुँचने लगे । खोटे सिक्कों को अपनी चालाकी पर बड़ी खुशी हुई। गिनते-गिनते एक सिक्का नीचे जमीन पर गिर पड़ा, नीचे एक पत्थर था, उससे टकराया साहूकार चौंका—हैं यह क्या ! चमक तो अच्छी है, पर आवाज थोथी है। उसे शंका हुई। उसने दुबारा फिर सब सिक्के निकाले और पटक-पटक उनकी जाँच शुरू की। फिर क्या था, असली सिक्के एक तरफ और नकली एक तरफ रख दिये । दिखावट थोड़े समय तक चल सकती है, आखिर खोटाई प्रकट हो जाती है । इसीलिए तो गौतम ऋषि ने चेतावनी देते हुए कहा-माया ठगिनी है, इससे बचकर चलो। यह बहुत खतरनाक है। यह माया ही भयजनक है। इस माया के चक्कर में जितने भी लोग लुभा गए, उन सबके लिए यह खतरनाक सिद्ध हुई है। इसने अनेक लोगों को रुला-रुलाकर छोड़ा है। जो भी इसके चंगुल में फंसा कि उसकी स्थिति भयानक हो गई। साँप का शरीर बहुत ही मुलायम, रेशम-सा कोमल और चमकीला होता है, परन्तु उस चमकीले और मुलायम शरीर की ओट में जहर छिपा होता है । चमकीला और गुदगुदा कोमल शरीर मायावी होता है। इसीलिए तो कहा गया है "विषकुम्भं पयोमुखम् ।" घड़ा विष से भरा है, लेकिन ऊपर मुंह के पास उसमें दूध भरा है, ताकि घड़े की विषाक्त माया को लोग झटपट जान न सकें। पाश्चात्यविचारक Whately (हटली) के शब्दों में कहूँ तो All frauds, like the wall daubed with untempered mortar, with which men think to buttress up an edifice, always tend to the decay of what they are devised to support. समस्त माया (छलकपट) उस दीवार के समान हैं, जो मुलायम नहीं किये हुए कच्चे चूने से पोती हुई है और जिस दीवार के आधार पर मनुष्य एक महल को खड़ा करना चाहते हैं परन्तु उन मनुष्यों ने महल को सहारा देने के लिए उस जिस दीवार की कल्पना की थी, वह सदा उसका विनाश करने की ओर झुकी रहती है । निष्कर्ष यह है, माया जहाँ भी, जिस वस्तु में या जीवन में आ जाती है, वह Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004011
Book TitleAnand Pravachan Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Kamla Jain
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1979
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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