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________________ २० माया : भय को खान धर्मप्रेमी बन्धुओ! आज मैं आपको जीवन के एक ऐसे मोड़ पर ले जाना चाहता हूँ, जिसे देखसमझ कर, जिस पर गहराई से चिन्तन करके आप समझ सकें कि उस जीवन में एक चीज बड़ी खतरनाक है, बहुत ही भयावह है । वह है-माया । बाहर से तो यह बड़ी सुन्दर, सलौनी और सुहावनी दिखती है, परन्तु अन्दर से बड़ी भयानक है । इसीलिए गौतम कुलक में १९वाँ जीवन सूत्र दिया गया है-"माया, भयं किं ?" भय क्या है ? माया। अर्थात्-माया अपने आप में एक प्रकार की भीति है । माया, भय का स्रोत है । जहाँ माया होगी, वहाँ भय या खतरा अवश्य होगा। माया के बिना भय का पैर टिक नहीं सकता है। सारांश यह है कि ऐसा जीवन, जो मायामय होगा, भय से ओतप्रोत होगा । भय का जनक होगा। . माया भय का स्रोत : क्यों और कैसे ? मायामय जीवन का अर्थ है-छिपा हुआ जीवन, गूढ़ जीवन । जिस जीवन में अन्दर कुछ और हो, बाहर कुछ और दिखाया जा रहा हो। ऐसा जीवन लोगों के . लिए भयावह इसलिए होता है कि लोग छिपी हुई चीज को पहचान नहीं पाते और एकदम मायावी जीवन से प्रभावित हो जाते हैं, धोखा खा जाते हैं। जो जीवन छिपा हुआ होगा, उसका हर एक व्यक्ति को पता नहीं लगेगा कि इसके अन्दर क्या है ? बाहर की वेशभूषा की सजावट, चेहरे की चमकदमक एवं लच्छेदार भाषण-सम्भाषण छटा से साधारण व्यक्ति तो झटपट आकर्षित और प्रभावित हो जाता है । वह उसे ही सिद्ध पुरुष, पहुँचा हुआ पुरुष, भगवान और न जाने क्या-क्या मानने लगता है। उसके बाद वह किसी दिन उसके झांसे में ऐसा आ जाता है कि उसे छठी का दूध याद आ जाता है। __ आपके सामने कोई किसी चीज को इस ढंग से सजा कर रखे कि आपको उसमें और असली चीज में कोई अन्तर न मालूम दे तो झटपट विश्वास हो जाएगा, आप शायद बहुत जल्दी ही उसके चक्कर में आ जायेंगे । पीतल पर मुलम्मा चढ़ा हो, तो उसकी चमकदमक असली सोने से भी बढ़ कर हो जाती है, सहसा कोई भी आदमी चक्कर में आ जाता है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004011
Book TitleAnand Pravachan Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Kamla Jain
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1979
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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