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शत्रु बड़ा है, अभिमान
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हैं। वे लोगों का हित-अहित नहीं सोचते । भ्रष्टाचार कालाबाजारी और मुनाफाखोरी का मार्ग अपनाते हैं। फलतः शीघ्र धनवान बनते जाते हैं परन्तु इस प्रकार अनीति से उपार्जित धन प्रायः शृंगार या विलासिता में खर्च हो जाता है ।
एक व्यापारी को किसी प्रकार से बहुत बड़ा लाभ हुआ। मनमाना रुपया आ गया। फिर क्या था, वह व्यक्ति कामवासना के अनियन्त्रण का शिकार हो गया। आवारागर्दी की हालत में पकड़ा गया। जब उसका उद्वेग शान्त हुआ, तब उसने लज्जित होकर कहा-'अत्यधिक सम्पत्ति ने मुझे उद्विग्न कर दिया था। मैं इतराने लगा । दूसरों पर अपनी सफलता और रौब जमाने के लिए मैंने वे अनुचित अवांछनीय कार्य किये । अब पछता रहा हूँ।"
निष्कर्ष यह है कि अहंकार से प्रेरित होकर तीव्रगति से अन्याय-अनीति द्वारा उपार्जित धन-एक प्रकार का पाप है। इसकी गति तीब्र होने से पाप की पराकाष्ठा आते भी विलम्ब नहीं लगता। पापों की पराकाष्ठा तक पहुंचने की अवधि में भले ही कोई अहंकारी अपने को चतुर समझता रहे, किन्तु पाप की पराकाष्ठा पर पहुंचते ही सारा समाज उसका सच्चा स्वरूप जान जाता है और हृदय से उसका साथ छोड़ देता है । पापजन्य पतन से उठ पाना भी उसके लिए दुष्कर हो जाता है।
आत्म-विकास में बाधक अहंकार शत्रु आत्म-विकास में बहुत ही बाधक है। अहंभाव मनुष्य को हद दर्जे का संकीर्ण और स्वार्थी बना देता है । अज्ञानी आत्मा को केवल अपने शरीर तक ही सीमित मानता है, जो कि अहंकार शत्रु के हृदय में प्रवेश होने पर होता है। इससे समस्त प्राणियों को आत्मबल मानने की प्रवृत्ति रुक जाती है। क्योंकि अहंकारी तो अन्य प्राणियों को अपने से भिन्न मानता है ।
समाज का अस्तित्व पारिवारिक सहयोग, प्रेम, मैत्रीभाव आदि पर टिका हुआ है। यदि इन भावों का सर्वथा अभाव हो जाये, तो मनुष्य अकेला अलग-अलग रह जाये। अहंकारशत्रु जब मनुष्य के हृदय में प्रविष्ट हो जाता है, तब वह दूसरों का सहयोगी नहीं बनता, वह सब कुछ अपने लिए ही करना चाहेगा। वह सब कुछ अपने और अपनों के लिए संग्रह करेगा। केवल अपनी ही सुख-सुविधा पर ध्यान देगा। ऐसी स्थिति में मैत्री, सहयोग या प्रेम भाव अहंकारी के जीवन में न आने से वह अपना आत्मविस्तार भी न कर सकेगा। आज संसार में दूसरे के जीवनयापन, उन्नति और प्रगति में सहायक या सहयोगी न होने से ही दुःख, क्लेश और संघर्ष दिखाई देते हैं।
समाज सहयोग में बाधक मनुष्य के यह सोचने का हेतु भी अहंकार ही है कि मैंने अपना विकास स्वयं किया है, समाज से कोई सहयोग नहीं लिया। क्योंकि समाज के सहयोग
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