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शत्रु बड़ा है, अभिमान
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मुचकुन्द की साधना अपूर्ण रह गई लगती है। संयमी और पराक्रमी होने के साथ उसे निरहंकारी भी होना चाहिए। परन्तु उनमें अहंकार का विषवृक्ष बढ़ रहा है। अतः अब तुम अविलम्ब स्वामी कार्तिकेय के पास जाओ और उन्हें सैन्य संचालन के लिए राजी करलो।"
इन्द्र द्वारा उक्त कथन से असहमति प्रगट किये जाने पर ब्रह्माजी ने समझाया कि "मनुष्य में अहंकार आने से उसका पतन हो जाना निश्चित है ।" तब इन्द्र ने ब्रह्मा की आज्ञा शिरोधार्य की और सैन्य संचालन के लिए स्वामी कार्तिकेय को राजी करके लौटे । लौटने पर इन्द्र को ज्ञात हुआ कि वस्तुतः प्रजापति का अनुमान गलत नहीं था। कल तक केवल युद्ध में ही ध्यान लगाने वाला मुचकुन्द आज अहंकारवश सुरा-सुन्दरियों की लपेट में आ गया है और अपनी सारी शक्ति उसी में ही नष्ट कर रहा है। देवों के श्रद्धेय ब्रह्मा की जागरूकता ने देवों को बचा लिया, अन्यथा, मुचकुन्द तो अधबीच में ही नैया डूबो देते ।
मुचकुन्द को असुरों ने बन्दी बनाकर पृथ्वी पर ला पटका, तब उन्हें अपनी भूल का पता चला । किन्तु अब पश्चात्ताप से कुछ भी नहीं हो सकता था । निराश मुचकुन्द के पास ब्रह्माजी स्वयं पहुँचे और बोले-"तात ! तुम्हारी साधना अपूर्ण रह गई थी, उसी का यह फल है। तुम्हें अहंकार रूपी शत्रु ने धर दबोचा । अतः अब फिर से साधना प्रारम्भ करो, पर देखना इस बार अहंकार शत्रु को भूलकर भी घुसने न देना, अन्यथा किया कराया सब चौपट हो जायगा।" वास्तव में एक अहंकार शत्रु के आते ही मुचकुन्द के संयम विनय, त्याग, तप, पराक्रम आदि समस्त सद्गुण नष्ट हो गए और उसने उन्हें एकदम पतन की खाई में ला पटका । इसीलिए महाभारत में कहा है
विनय-श्रुत-शीलानां त्रिवर्गस्य घातकः ।
विवेकलोचनं लुम्पन मानोऽन्धकरणो नृणाम् । अभिमान विनय, श्रुत, शील एवं त्रिवर्ग (धर्म, अर्थ और काम) का नाशक है । यह मनुष्यों के विवेक नेत्र को नष्ट करके उन्हें अन्धा कर देता है।
अहंकार शत्रु क्या-क्या हानि पहुँचाता है ? अब हमें यह देखना है कि अहंकार शत्रु मनुष्य का किस-किस रूप में अहिंत करता है ? क्या-क्या अहित करता है ?
अहंकार एक ऐसा शत्रु है कि वह आते ही शील, सौजन्य, ज्ञान, विवेक आदि सद्गुणों को नष्ट कर देता है। मन में अहंकार रहने पर मनुष्य दूसरों के सिर पर सवार हो जाना चाहता है । ऐसी दशा में वह दूसरों के साथ सद्व्यवहार करना भूल जाता है । क्योंकि अहंकारी तो अपने सिवाय अन्य किसी को कुछ समझता ही नहीं। वह दूसरों का अनादर करने पर उतारू हो जाता है। अहंता और क्रोध के आवेश में उसे कुछ नहीं सूझता। प्रायः छोटी-छोटी बातों से भड़ककर वह उग्ररूप धारण कर
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