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________________ अभिमानी पछताते रहते धर्मप्रेमी बन्धुओ ! आज मैं आपके सामने एक ऐसे जीवन की चर्चा करने जा रहा हूँ, जो अभिमान से ग्रस्त होता है। महर्षि गौतम के गौतमकुलक का यह बारहवाँ जीवन सूत्र है । इसका सूत्र इस प्रकार है- . माणंसिणो सोयपरा हवंति --अभिमानी व्यक्ति शोकपरायण---चिन्तातुर होते हैं, अथवा शोक का पराभव प्राप्त करते हैं। अभिमानी का स्वरूप इस जगत् में एक से एक बढ़कर अभिमानी हैं। किसी को अपनी जाति-कुल का अभिमान है, तो किसी को बल का; किसी को अपने रूप पर गर्व है, तो कोई अपने धन-वैभव पर इतराता है; कोई अपनी तपस्या का घमण्ड करता है तो किसी को अपनी उपलब्धियों पर नाज है; किसी को अपने ज्ञान का गर्व है, तो किसी को अपनी बुद्धि का मद है। ये सब अभिमानी या अहंकारी अपने पास जो भी शक्ति या उपलब्धि है, उसका मूल्यांकन अधिकाधिक करते हैं, परन्तु उनसे जब कोई सवाया मिलता है, तो उनका गर्व या अहंकार एक क्षण में चूर-चूर हो जाता है। अभिमानी प्रायः अपना नापतौल अधिक आंकता है, जबकि दुनिया के बुद्धिमानों की दृष्टि में वह कुछ नहीं है, नगण्य है, तुच्छ है। वास्तव में अभिमानी उस महागज पर बैठा हुआ है, जो अपनी आँखों से अपने से ऊपर के व्यक्ति को देख नहीं पाता, अपने कानों से अपने से अधिक गुणी के विषय में सुन नहीं पाता, अपने शरीर से अधिक बलिष्ठ एवं पुष्ट शरीर की गणना कर नहीं पाता। वास्तव में ऐसा व्यक्ति अपने आपको सदैव उत्कृष्ट, ऊँचा, श्रेष्ठ, उत्तम और उन्नत मानता है, और दूसरों को निकृष्ट, नीचा, कनिष्ठ, अधम और अवनत समझता है। यह गर्व स्फीत, मदगर्भित दृष्टि ही अभिमानी की दृष्टि है । वास्तव में यही मनुष्य की सबसे घातक कमजोरी है कि वह अपने न कुछ जीवन को बहुत कुछ समझता है। अहंकारी अपने अहं को, अपने आपको या अपनी मानी हुई वस्तु को अधिक महत्त्व देता है, अपनी या अपनी मानी हुई चीजों की प्रशंसा स्वयं करता है । वह बात-बात में अतिशयोक्ति करता है, अपनी हर चीज की बड़ाई करता है, अपनी शेखीबघारता है, अपने आचार-व्यवहार की डींगें हांकता है, अपने और अपनों के ही गौरवगान करता है, अपने स्वार्थ या Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004011
Book TitleAnand Pravachan Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Kamla Jain
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1979
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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