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________________ १२ क्रोधीजन सुख नहीं पाते धर्मप्रेमी बन्धुओ ! आज आपके सामने एक विशिष्ट एवं निकृष्ट जीवन का चित्र उपस्थित कर रहा हूँ । अब तक १० जीवन सूत्रों पर मैं प्रवचन कर चुका हूँ । आज ११ वें जीवन सूत्र पर विस्तृत विवेचन करना चाहता हूँ। यह जीवन सूत्र है 'कोहाभिभूया न सुहं लहंति' क्रोध से पराजित व्यक्ति सुख नहीं पाते । अर्थात् क्रोधी जीवन सुखी जीवन नहीं है । क्रोधी का सुख : कपूर की तरह मनुष्य चाहे जितना धनसम्पन्न हो, विद्या और बुद्धि में प्रगतिशील हो, सुखसुविधाओं से भी परिपूर्ण हो, धर्मक्रियाएँ भी करता हो, उसमें अहिंसा-सत्य आदि अन्य चाहे जितने गुण हो, नित्य-नियम, जप, माला, तप आदि चाहे जितना करता हो, शरीर भी सुन्दर और स्वस्थ हो, परिवार भी चाहे जितना अच्छा मिला हो, रहने के लिए सुविधाजनक मकान हो, व्यवसाय भी अच्छा चलता हो, परन्तु यदि उसमें ोध की आदत है, तो वह इन सब गुणों और सुखों का ह्रास कर देता है । क्रोध रूपी अग्नि सुखरूपी वृक्ष को जला डालती है । क्रोधी व्यक्ति के जीवन में जो भी थोड़ा बहुत सुख प्राप्त है, वह भी क्रोधावेश के कारण कपूर की तरह उड़ जाता है । एक व्यक्ति अपने परिवारवालों की बहुत सेवा करता है; धन उपार्जन के लिए मेहतभी खूब करता है अथवा घर का कार्य भी बहुत दिलचस्पी से करता है, परन्तु जब उसके शरीर में क्रोधरूपी पिशाच प्रविष्ट हो जाता है, तब वह क्रोध के आवेश में पागल हो जाता है, जैसे कि एक पाश्चात्य विचारक ने कहा है 'Anger is madness of mind.' 'क्रोध मन का पागलपन है ।' जैसे पागल आदमी को अपने हिताहित का भान नहीं रहता, वह किसी को चाहे जो कुछ कह देता है, इसीप्रकार क्रोधी भी अपने बुजुर्गों और महान् पुरुषों को कह देता है, उनका अविनय कर देता है, उनकी कोई भी क्रोधावेश में चाहे कुछ अदब नहीं रखता । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004011
Book TitleAnand Pravachan Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Kamla Jain
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1979
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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