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सत्त्ववान होते दृढ़धर्मी
धर्मप्रेमी बन्धुओ !
गौतमकुलक के आठ जीवन सूत्रों पर मैं इससे पहले आपके समक्ष विवेचन कर चुका हूँ । आज नौवें जीवन सूत्र के सम्बन्ध में आपके समक्ष कुछ विचार प्रस्तुत करूंगा। सत्ववान् मानव, विघ्न-बाधाएं और धर्म-परीक्षा
___ आप जानते ही हैं कि सद्धर्भ के पथ पर चलते हुए अनेक विघ्नबाधाओं का आना स्वाभाविक है। जीवन में धर्म-पालन करते हुए कई उतार-चढ़ाव आते हैं, उनका आना स्वाभाविक है । परन्तु यह याद रखिए कि कठिनाइयों का मानव-जीवन में बहुत बड़ा महत्व है। कोई सोच सकता है कि कठिनाइयों से तो कष्ट होता है, प्रगति में बाधा पड़ती है, वे किसी के जीवन में महत्वपूर्ण किस प्रकार हो सकती हैं ? जीवन में सामान्य मानव तो सुख-सुविधाओं को महत्वपूर्ण मानता है। वह यही सोचा करता है कि सुख-सुविधा से परिपूर्ण हो, वही धर्म ठीक है, अथवा जहाँ तक संकट न आए, यहाँ तक धर्म का पालन हो जाए वही ठीक है। परन्तु यह विचार अल्पसत्त्व एवं दुर्बल मन वालों का है । वास्तव में यह विचार भ्रान्तिपूर्ण है। धर्मपालन में आने वाली कठिनाइयों के महत्व पर गहराई से विचार किया जाए तो मालूम होगा कि कठिनाइयाँ मनुष्य के शरीर, मन, बुद्धि और आत्मा के विकास एवं धर्मदृढ़ता के लिए जरूरी है। कठिनाइयाँ जीवन की कसौटी हैं, जिनमें व्यक्ति के आदर्श, धर्म, सिद्धान्त, नैतिकता और शक्तियों का मूल्यांकन होता है। कठिनाइयाँ एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसके अन्तर्गत व्यक्ति सुदृढ़, प्रबुद्ध और अनुभवी बनता है। प्रारम्भिक कठिनाइयाँ मनुष्यों को बड़ी भयंकर जान पड़ती है। किन्तु धीरे-धीरे वही व्यक्ति कठिनाइयों में पलते-पलते इतना दृढ़ एवं परिपक्व हो जाता है कि जिन परिस्थितियों में वह भयभीत, चिन्ताग्रस्त एवं विषादमग्न रहा करता था, उन्हीं परिस्थितियों में वह बेधड़क होकर धर्म पथ पर चलता रहता है।
दूसरी बात यह है कि कठिनाइयों में ही मनुष्य के धर्म की कसौटी होती है कि वह उस पर कितना दृढ़ है, अविचल है। गोस्वामी तुलसीदासजी ने कहा है
"धीरज धर्म मित्र अरु नारी। आपतकाल परखिये चारी ॥"
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