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________________ जीवन को परख प्रकार कुल को अपने उपदेशों की धरोहर दें, यह असम्भव नहीं है । अतः 'गौतम कुलक' का अर्थ हुआ - 'महर्षि गौतम का श्रमण संस्कृति-मूलक कुल के लिए उस कुल के आचार-व्यवहार एवं नीति- रीति के सम्बन्ध में दिया गया उपदेश । " कुल के संस्कारों एवं स्मरण का दूरगामी प्रभाव गौतम - कुलक में कुल शब्द जोड़ने के पीछे एक बहुत बड़ा रहस्य यह भी हो सकता कि कुल की स्मृति में बहुत बड़ा चमत्कार है । कुलीन व्यक्ति अपने शिष्ट कुल की मर्यादा में रहता है । वह अपने कुल की परम्परा को, अगर वह देश, काल और पात्र की दृष्टि से हितकर हो तो कदापि छोड़ता नहीं । कुल के संस्कार जबर्दस्त होते हैं। आज तो लोग कुल के संस्कारों से प्रायः वंचित रखे जाते हैं । बचपन से उन्हें विदेशी वेषभूषा, भाषा और रहन-सहन से अभ्यस्त किया जाता है । उन्हें अंग्रेजी माध्यम वाले स्कूलों में पढ़ने भेजा जाता है । इससे वे शूटेड - बूटेड हो जाएँ और अपनी देशी पोशाक, भाषा और रहन-सहन को भूल जाते हैं । उन्हें अपनी मातृभाषा से कोई खास लगाव या रुचि नहीं रहती और न ही वे पढ़ना चाहते हैं । कुल के शुद्ध संस्कार भी धीरे-धीरे उन लड़के-लड़कियों में लुप्त हो जाते हैं । परन्तु जिसमें कुल के शुद्ध संस्कार होते हैं, वह मनुष्य विदेश जाने पर भी और वहाँ की भाषा बोलने पर भी अपनी देशी वेशभूषा एवं भाषा को नहीं छोड़ता, और न ही कुल के संस्कारों को छोड़ता है । महात्मा गांधी जब विदेश जाने का विचार करने लगे, तब जाति के पंचों ने आपत्ति उठाई कि वहाँ जाने पर कुल के संस्कार सुरक्षित नहीं रहते, अतः विदेश नहीं जा सकते । इस पर महात्मा गांधी की माँ पुतलीबाई ने कहा - " विदेश जाने में यदि कुल के संस्कारों की ही क्षति है तो इसका उपाय तो मैं कर दूंगी, मैं अपने पुत्र को तीन बातों की कठोर प्रतिज्ञा दिलाकर ही विलायत भेजूंगी, फिर तो जाति को कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए ।" फलतः गांधीजी की मां उन्हें जैनमुनि श्री बेचरजी स्वामी के पास ले गईं और उनसे प्रार्थना की— मेरा बेटा विदेश जा रहा है, अतः इसे तीन प्रतिज्ञाएँ दिला दीजिए - ( १ ) शराब न पीना, (२) मांसाहार न करना और ( ३ ) परस्त्री - सेवन न करना ।" बेचरजी स्वामी ने महात्मा गांधी को तीन प्रतिज्ञाएँ दिला दीं। माताजी ने गांधीजी से कहा - "बेटा ! अब तुम खुशी से विलायत जा सकते हो । अब मुझे अपने कुल के संस्कारों की सुरक्षा का पूरा भरोसा हो गया है ।" और सचमुच महात्मा गांधी विदेश में इन तीनों प्रतिज्ञाओं की अनेक बार हुई परीक्षाओं में उत्तीर्ण हुए। वे विदेश में भी अपनी भारतीय वेशभूषा में रहे । वास्तव में कुल आचार-विचारों की सुरक्षा के लिए नियमबद्धता की आवश्यकता है, वैसे कुल की स्मृति की भी आवश्यकता है। कुल की स्मृति में कितनी शक्ति है इसे एक उदाहरण द्वारा समझाता हूँ । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004011
Book TitleAnand Pravachan Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Kamla Jain
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1979
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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