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________________ जीवन की परख बन्धुओ! आज मैं आपके सामने मानव जीवन की परख के सम्बन्ध में विस्तार से चर्चा करने का विचार लेकर आया हूँ । हमारी यह चर्चा काफी लम्बी होगी और कई दिनों तक चलेगी। मैं एक प्राचीन ग्रन्थ के आधार पर इसकी चर्चा आपके समक्ष प्रस्तुत करना चाहता हूँ। हमारे प्राचीन ग्रन्थों में भारतीय संस्कृति और धर्म के बहुमूल्य रत्न भरे पड़े हैं। उनमें जीवन को अनुभव तथा विवेक बुद्धि से समृद्ध एवं प्रकाशित करने की अपूर्व क्षमता है। चाहिए उन रत्नों को ढूंढने और परखने वाला। गौतमकुलक : एक परिचय इस संक्षिप्त और सारगभित ग्रन्थ का नाम है—गौतमकुलक । 'गौतमकुलक' नाम के पीछे क्या रहस्य छिपा है ? इसे पूर्ण रूप से तो ज्ञानी महापुरुष ही बता सकते हैं । मैं अपनी अल्प मति से इसका तात्पर्य जहाँ तक समझ पाया हूँ, वह यह है कि गौतम नाम के महर्षि द्वारा रचित कुलक 'गौतमकुलक' है। जैसा कि इस ग्रन्थ पर वार्तिककार कहते हैं “यद् गौतम ऋषिणा प्रोक्तं गौतम कुलकं वरम् । तस्य विस्तारतः कुर्वे वार्तिकं लोकभाषया ।" -जो श्री गौतमऋषि ने श्रेष्ठ गौतम-कुलक नामक ग्रन्थ कहा है, उस पर मैं लोकभाषा में विस्तार से वार्तिक रच रहा हूँ। इस ग्रन्थ के रचयिता श्री गौतमऋषि हैं, यह तो इस ग्रन्थ के नाम पर से स्पष्ट है। परन्तु श्री गौतमऋषि कौन थे? उनका जन्म, दीक्षा, विचरण कहाँ हुआ था? उन्होंने किस हेतु से और कब इस ग्रन्थ को लिखा है या धर्मसभा में श्रोताओं के समक्ष कहा है ? यह अज्ञात है। इतिहास इस विषय में मौन है। परन्तु ये गौतमऋषि श्रमणभगवान् महावीर के पट्टशिष्य गणधर श्री इन्द्रभूति गौतम नहीं हो सकते, क्योंकि उनके समय में जैनमुनियों में किसी भी ग्रन्थ को लिपिबद्ध करने की Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004011
Book TitleAnand Pravachan Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Kamla Jain
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1979
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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