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आनन्द प्रवचन : भाग ८
होते हुए भी बात-बात में वह भड़क उठता हो, चलती राह दूसरों से झगड़ा कर बैठता हो, पद-पद पर विरोध मोल ले लेता हो, हर बात में लोगों की नुक्ताचीनी, आलोचना और निन्दा करने लगता हो, प्रत्येक व्यक्ति के दोष देखने का आदी हो, दूसरों के प्रति ईर्ष्या और द्वष से उसका मन-मस्तिष्क सन्तप्त रहता हो, उसकी जबान में कटुता हो, उसका जीवन नीरस, शुष्क और मनहूस बन जाता है, विरोध, संघर्ष और लड़ाई करने की वृत्ति उसके मन को उद्विग्न और अशान्त बना देती है। ऐसी स्थिति में न तो उसे किसी का सहयोग मिलता है, न सद्भावना ही। परिवार में भी उससे लोग अधिक बोलना पसन्द नहीं करते; समाज में भी प्रतिक्रियास्वरूप कुछ लोग उसके अत्यन्त विरोधी और कट्टर दुश्मन तक बन जाते हैं। संक्षेप में यों कहा जा सकता है कि उसे सुन्दर रीति से जीवन जीना नहीं आता। पण्डित होते हुए भी वह व्यक्ति पढ़ा-लिखा मूर्ख है, विद्वान् होते हुए भी वह असहिष्णु है, शिक्षित होते हुए भी वह सबका विरोधी है । इसीलिए गौतमकुलक के पांचवें सूत्र में, पण्डितजीवन कैसा होना चाहिए ? इसके सम्बन्ध में बताया गया
"ते पंडिया जे विरया विरोहे" पण्डित वे ही हैं, जो विरोध से विरत-दूर होते हैं । अर्थात्-पण्डित वे हैं, जो तमाम विरोधों से दूर रहते हों, जिनके जीवन में विरोधों का नामोनिशान न हो । वे इतने विचक्षण हों कि जहाँ विरोध का प्रसंग आता हो, वहाँ दूर से ही उसका त्याग करें, अगर विरोध सर पर खड़ा हो, तो उसे शमन करें। सहिष्णु, मिलनसार, नम्र
और निरहंकारी बनकर वे विरोध और संघर्ष के मौकों पर मध्यस्थ और तटस्थ की भूमिका निभाएँ, स्वयं किसी प्रकार का विरोध खड़ा न करें। पण्डित की पहिचान
आज दुनिया में पोथीपण्डित तो सैकड़ों हजारों मिलेंगे, लेकिन वास्तविक पण्डित का मिलना अत्यन्त दुर्लभ है । एक संस्कृत के कवि ने ऐसे नामधारी पण्डित चार प्रकार के बताए हैं
सभायां पण्डिताः केचित्, केचित् पण्डित-पण्डिताः ।
गृहेषु पण्डिताः केचित्, केचिन्मूर्खेषु पण्डिताः ॥ कई लोग केवल सभाओं में गर्जने वाले पण्डित होते हैं, कई ऐसे होते हैं, जो केवल पण्डितों में ही पाण्डित्य बघारने वाले होते हैं, कई सिर्फ घर में ही पण्डित होते हैं, वे आलसी बने पड़े रहते हैं, केवल यजमानी के आधार पर अपना गुजारा चलाते हैं और कई पढ़े-लिखे तो कम होते हैं, पर मूखों में अपनी चातुरी बता कर उनके पण्डित बने रहते हैं।
जो पण्डित सभाओं में लम्बी-चौड़ी बातें करने वाले होते हैं, वे अधिकांश तो पोथीपण्डित होते हैं, उनके जीवन व्यवहार और सिद्धान्त में रात-दिन का अन्तर
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