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आनन्द प्रवचन : भाग ८
या बेईमानी से धन कमाता है। वह परिवार, समाज, राष्ट्र एवं विश्व के प्रति अपने कर्तव्यों एवं दायित्वों के निर्वाह के लिए किसी न किसी योग्य आजीविका से धन कमाता है। समय आने पर वह खेमाशाह देदराणी की तरह या जगडूशाह की तरह अपने धन का समाज पर आए हुए संकट के निवारणार्थ खुलकर उपयोग करता है, दीनदुखियों को सहायता देता है, कभी किसी को अपने घर से निराश नहीं लौटाता। समय आने पर अहमदाबाद के नगरसेठ खुशालचन्द्र ने जैसे एक विदेशी शासक के घातक हमले, आगजनी एवं लूटपाट से अपनी सर्वस्व सम्पत्ति देकर अहमदाबाद को बचाया । वैसे ही आप लोग भी धर्ममूलक अर्थकामसेवी का-सा जीवन जीएँ। धन से ही नहीं, अपने शरीर और बुद्धि से भी दूसरों की सेवा और संकट में सहायता करके परोपकारी कार्य कर सकते हैं।
जिस प्रकार कच ने अपने विद्यागुरु शुक्राचार्य की पुत्री देवयानी की प्रणय (काम) याचना ठुकरा दी और उसे भगिनी मानकर अपने धर्म की रक्षा की, वैसे ही आपको काम और धर्म के संघर्ष में अपने धर्म की रक्षा करनी है। वाचस्पतिमिश्र ने जैसे काम और धर्म के संघर्ष में कामवृत्ति या कामशक्ति को ब्रह्मसूत्र आदि के लेखन कार्य में लगा कर उसको धर्मलक्षी बना दी, वैसे ही आप भी काम प्रवाह को धर्मप्रवाह की ओर मोड़ सकते हैं। इसी प्रकार जब भी आपके सामने अर्थप्रलोभन आकर आपके धर्म का हरण करना चाहे वहाँ आप न्यूयार्कटाइम्स के तत्कालीन सम्पादक जॉर्जजोन्स की तरह धन को ठुकराकर अपने धर्म की रक्षा करें, जिन्हें ३३ लाख रुपयों का लोभ देकर अपनी बुराइयों के विषय में पत्र में न छापने के लिए कहा गया, परन्तु वह धर्मवीर इस प्रलोभन के चक्कर में नहीं आया और इतना बड़ा लोभ छोड़कर भी अपनी नीतिमत्ता में दृढ़ रहा ।
वास्तव में अर्थ-काम की प्रवृत्ति के समय आपकी धर्मनिष्ठा पक्की होनी चाहिए, तभी आपका जीवन धर्मपुनीत गृहस्थ का-सा जीवन होगा।
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