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________________ ६८ आनन्द प्रवचन : सातवाँ भाग बन्धुओ, ये दो तो औषधियाँ हुईं जिन्हें आत्मार्थी को सेवन करना चाहिए साथ ही दो प्रकार के परहेज भी रखने चाहिए जिन्हें मैं आपको बताने जा रहा हूँ। क्योंकि परहेज के अभाव में कभी दवा कारगर नहीं हो पाती। मराठी में कहा भी है-- "जेणे हरीमात्रा ध्यावी, तेणे पथ्य साम्भालावी।" कमजोर को रसायन लेना बहुत उत्तम है, क्योंकि वह ताकत पहुँचाती है पर वह अपना काम तभी करेगी, जबकि पथ्य का ध्यान रखा जाएगा। संस्कृत में भी एक श्लोक है-- औषधेन विना व्याधिः पथ्यादेव निवर्तते । न तु पथ्यविहीनस्य भेषजानां शतैरपि ॥ कहते हैं कि --बिना दवा लिए भी परहेज से ही बीमारी हट सकती है, किन्तु अगर कोई परहेज न करते हुए सैकड़ों दवाइयाँ भी लेवे तो कोई फायदा नहीं होता। इसलिए दवा के साथ पथ्य बराबर लेना या परहेज रखना अनिवार्य है। तो मैं आपको यह बता रहा था कि श्रद्धा को मजबूत करने के लिए प्रतिक्रमण के दर्शन-पाठ में दो औषधियां बताई गई हैं। जिनमें से पहली है-परमार्थ यानी नौ तत्त्वों की जानकारी, उन पर चिन्तन-मनन तथा उसके पश्चात् विवेक की सहायता से पुण्य, संवर एवं निर्जरा आदि के सुमार्ग पर चलते हुए मुक्ति प्राप्त करना । और दूसरी औषधि है-स्वयं में तत्त्वों की जानकारी या उनका ज्ञान प्राप्त करने लायक बुद्धि न हो तो जो इनके ज्ञाता हैं उन्हें गुरु मानकर उनके उपदेशों से तत्त्वों को समझना तथा उनकी संगति करके उनके जीवन से शिक्षा लेकर उसे अपने जीवन में उतारना। __ अब इन दो औषधियों के साथ दो प्रकार के जो परहेज बताये गये हैं, उन्हें आपके सामने रखता हूँ। परहेजों की आवश्यकता या अनिवार्यता के विषय में तो अभी मैं संस्कृत के एक श्लोक के द्वारा बता चुका हूँ अतः अब परहेज आपके सामने रखना है। श्रद्धा को दृढ़ बनाने वाली औषधियों के प्रयोग के साथ जिन दो परहेजों को रखना है, उनमें से पहला है-जिन व्यक्तियों ने सम्यक्त्व को पाकर भी फिर उसका वमन कर दिया है, अर्थात् उसका त्याग कर दिया है, उनकी कदापि संगति नहीं करना तथा दूसरा परहेज है-जिनके मानस में श्रद्धा का अभाव है या कुश्रद्धा है, उनके समीप भी नहीं फटकना । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004010
Book TitleAnand Pravachan Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Kamla Jain
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1975
Total Pages418
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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