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प्रकाशकीय
आनन्द प्रवचन का यह सातवाँ भाग पाठकों के समक्ष प्रस्तुत करते हुए हमें प्रसन्नता का अनुभव हो रहा है। विगत १३ फरवरी को अमृत महोत्सव के प्रसंग पर पांचवें भाग का विमोचन सम्पन्न हुआ था, कुछ समय पश्चात् छठा भाग भी पाठकों के हाथों में पहुंचा और अब यह सातवाँ भाग प्रस्तुत है।
आनन्द प्रवचन के पिछले छह भाग पाठकों ने बड़े उत्साह और प्रेम के साथ अपनाये हैं । स्थान-स्थान से उनकी माँग बराबर आ रही हैं । सामान्य पाठकों को प्रेरणाप्रद सामग्री उसमें मिली है। इसी प्रकाशन शृखला में अभी-भी 'भावना योग' नामक महत्त्वपूर्ण पुस्तक भी प्रकाश में आई है। भावनायोग में भावना के सम्बन्ध में बड़ा ही मौलिक तथा अनुसंधानपरक जीवनोपयोगी विवेचन किया गया है । इस पुस्तक का सम्पादन प्रसिद्ध विद्वान श्रीचन्द जी सुराना 'सरस' ने किया है । इस पुस्तक को विद्वज्जगत ने तथा जिज्ञासु पाठकों ने मुक्तमन से सहारा है ।
प्रस्तुत भाग में संवरतत्त्व के विवेचन पर आचार्य श्री के २६ प्रवचन हैं। कुशल सम्पादिका बहन श्री कमला “जीजी" ने बड़े ही श्रम और अध्यवसाय के साथ इन प्रवचनों का सम्पादन किया है । "जीजी" ने साहित्य सेवा के क्षेत्र में जो उपलब्धि की है, वह चिरस्मरणीय रहेगी।
इस पुस्तक का मुद्रण पूर्व भागों की भाँति श्रीयुत श्रीचन्द जी सुराना की देख-रेख में हुआ है । उनका योगदान बहुमूल्य है ।
प्रकाशन-मुद्रण में जिन सज्जनों का उदार अर्थ सहयोग प्राप्त हुआ, हम उनके आभारी हैं । आशा है पाठक इसे भी उत्साहपूर्वक अपनायेंगे।
मंत्री श्रीरत्न जैन पुस्तकालय, पाथर्डी
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