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सुनकर सब कुछ जानिए
भद्दएणेव होअव्वं पावइ भद्दाणि भद्दओ । सविसो हम्मए सप्पो, भेरुडो तत्थ मुच्चई ॥
अर्थात् - मनुष्य को भद्र होना चाहिए, भद्र को ही कल्याण की प्राप्ति होती है । विषधर सर्प मारा जाता है, निर्विष को कोई नहीं मारता ।
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वस्तुत: जिस प्रकार विषधर सर्प मारा जाता है और उसे घोर कष्ट उठाने पड़ते हैं निर्विष को नहीं, इसी प्रकार कषायों के विष से रहित जीव जहाँ शाश्वत सुख की प्राप्ति कर लेता है, वहाँ कषायों के विष को अपने में पालने वाला जीव एक बार ही नहीं अपितु असंख्य बार जन्म ले लेकर काल के द्वारा मरण को प्राप्त होता है ।
इसलिए भले ही व्यक्ति में ज्ञान की अधिकता और विद्वत्ता न हो, पर हृदय राग-द्वेष के विष से रहित शुद्ध और सरल होना चाहिए। ऐसा व्यक्ति ही वीतराग की वाणी को या सद्गुरुओं के उपदेश को सुवर्ण पात्र के समान अपने मानस में सुरक्षित रख सकता है । भद्रता या सरलता का एक छोटा-सा उदाहरण है
एक धनी साहूकार अपने नौकर के साथ किसी दूसरे गाँव को जा रहा । साहूकार ने नौकर से कहा – “देखो, कोई वस्तु गिर जाय तो उसे उठा लेना । "
था
" जी !" कहकर नौकर ने सरलता से इस बात को स्वीकार कर लिया ।
साहूकार घोड़े पर था । चलते-चलते पहले उसका एक कीमती दुशाला पृथ्वी पर गिर पड़ा। नौकर ने उसे उठाकर हाथ में ले लिया। कुछ दूर और चलने पर घोड़े ने लीद कर दी । बेचारा नौकर आज्ञाकारी था अतः उसने लीद को उठाया और दुशाले में बाँध लिया ।
यद्यपि नौकर अज्ञानी था किन्तु सरल और आज्ञाकारी भी था। अगर उसे कुछ समझाया जाता तो वह अविलम्ब सीख को ग्रहण कर लेता । यह केवल सरलता का एक नमूना ही है । मैं इससे यही बताना चाहता हूँ कि ऐसे सरल हृदय रखने वाले व्यक्ति सद्गुरुओं के उपदेशों को भी शीघ्र ग्रहण कर लेते हैं तथा भगवान की आज्ञा का पूर्ण श्रद्धा एवं विश्वास से पालन करते हैं । प्राचीन काल में भी अधिकांश व्यक्ति शुद्ध और सरल चित्त वाले होते थे अतः वे जो कुछ भी सुनते उसे सही रूप में ग्रहण करके जीवन में उतार लेते थे और जो कुछ भी करते थे या सोचते थे, उसके पीछे अन्तःकरण की शुद्ध भावना होती थी जो कि डगमगाती नहीं थी ।
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